Benshreena Vachanamrut-Gujarati (Devanagari transliteration). Bol: 202.

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बहेनश्रीनां वचनामृत
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परंतु अपरिणामी तत्त्व उपरज्ञायक उपर द्रष्टि ते ज सम्यक् द्रष्टि छे. माटे ‘आ मारी ज्ञाननी पर्याय’, ‘आ मारी द्रव्यनी पर्याय’ एम पर्यायमां शुं काम रोकाय छे? निष्क्रिय तत्त्व उपरतळ उपर द्रष्टि स्थाप ने!

परिणाम तो थया ज करशे. पण, आ मारी अमुक गुणपर्याय थई, आ मारा आवा परिणाम थया एम शा माटे जोर आपे छे? पर्यायमांपलटता अंशमांद्रव्यनुं परिपूर्ण नित्य सामर्थ्य थोडुं आवे छे? ते परिपूर्ण नित्य सामर्थ्यने अवलंब ने!

ज्ञानानंदसागरनां तरंगोने न जोतां तेना दळ उपर द्रष्टि स्थाप. तरंगो तो ऊछळ्या ज करशे. तुं एमने अवलंबे छे शुं काम?

अनंत गुणोना भेद उपरथी पण द्रष्टि हठावी ले. अनंत गुणमय एक नित्य निजतत्त्वअपरिणामी अभेद एक दळतेमां द्रष्टि दे. पूर्ण नित्य अभेदनुं जोर लाव. तुं ज्ञाताद्रष्टा थई जईश. २०१.

द्रढ प्रतीति करी, सूक्ष्म उपयोगवाळो थई, द्रव्यमां ऊंडो ऊतरी जा, द्रव्यना पाताळमां जा. त्यांथी तने