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शान्ति ने आनंद मळशे. खूब धीरो थई द्रव्यनुं तळियुं ले. २०२.
आ बधे — बहार — स्थूळ उपयोग थई रह्यो छे, ते बधेथी उठावी, खूब ज धीरो थई, द्रव्यने पकड. वर्ण नहि, गंध नहि, रस नहि, द्रव्येन्द्रिय पण नहि अने भावेन्द्रिय पण द्रव्यनुं स्वरूप नथी. जोके भावेन्द्रिय छे तो जीवनी ज पर्याय, पण ते खंडखंडरूप छे, क्षायोपशमिक ज्ञान छे अने द्रव्य तो अखंड ने पूर्ण छे, माटे भावेन्द्रियना लक्षे पण ते पकडातुं नथी. आ बधांथी पेले पार द्रव्य छे. तेने सूक्ष्म उपयोग करीने पकड. २०३.
आत्मा तो अनंत शक्तिओनो पिंड छे. आत्मामां द्रष्टि स्थापवाथी अंदरथी ज घणी विभूति प्रगटे छे. उपयोगने सूक्ष्म करी अंदर जवाथी घणी स्वभावभूत रिद्धिसिद्धिओ प्रगटे छे. अंदर तो आनंदनो सागर छे. ज्ञानसागर, सुखसागर — ए बधुं अंदर आत्मामां ज छे. जेम सागरमां गमे तेटलां जोरदार तरंगो ऊछळ्या करे तोपण तेमां वधघट थती नथी, तेम अनंत अनंत काळ सुधी केवळज्ञान वह्या करे