Benshreena Vachanamrut-Gujarati (Devanagari transliteration). Bol: 203-204.

< Previous Page   Next Page >


Page 68 of 186
PDF/HTML Page 85 of 203

 

६८

बहेनश्रीनां वचनामृत

शान्ति ने आनंद मळशे. खूब धीरो थई द्रव्यनुं तळियुं ले. २०२.

आ बधेबहारस्थूळ उपयोग थई रह्यो छे, ते बधेथी उठावी, खूब ज धीरो थई, द्रव्यने पकड. वर्ण नहि, गंध नहि, रस नहि, द्रव्येन्द्रिय पण नहि अने भावेन्द्रिय पण द्रव्यनुं स्वरूप नथी. जोके भावेन्द्रिय छे तो जीवनी ज पर्याय, पण ते खंडखंडरूप छे, क्षायोपशमिक ज्ञान छे अने द्रव्य तो अखंड ने पूर्ण छे, माटे भावेन्द्रियना लक्षे पण ते पकडातुं नथी. आ बधांथी पेले पार द्रव्य छे. तेने सूक्ष्म उपयोग करीने पकड. २०३.

आत्मा तो अनंत शक्तिओनो पिंड छे. आत्मामां द्रष्टि स्थापवाथी अंदरथी ज घणी विभूति प्रगटे छे. उपयोगने सूक्ष्म करी अंदर जवाथी घणी स्वभावभूत रिद्धिसिद्धिओ प्रगटे छे. अंदर तो आनंदनो सागर छे. ज्ञानसागर, सुखसागरए बधुं अंदर आत्मामां ज छे. जेम सागरमां गमे तेटलां जोरदार तरंगो ऊछळ्या करे तोपण तेमां वधघट थती नथी, तेम अनंत अनंत काळ सुधी केवळज्ञान वह्या करे