Benshreena Vachanamrut-Gujarati (Devanagari transliteration). Bol: 205-206.

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बहेनश्रीनां वचनामृत
६९

तोपण द्रव्य तो एवुं ने एवुं ज रहे छे. २०४.

चैतन्यनी अगाधता, अपूर्वता ने अनंतता बतावनारां गुरुनां वचनो वडे शुद्धात्मदेव बराबर जाणी शकाय छे. चैतन्यना महिमापूर्वक संसारनो महिमा छूटे तो ज चैतन्यदेव समीप आवे छे.

हे शुद्धात्मदेव! तारा शरणे आववाथी ज आ पंचपरावर्तनरूपी रोग शान्त थाय छे. जेने चैतन्यदेवनो महिमा लाग्यो तेने संसारनो महिमा छूटी ज जाय छे. अहो! मारा चैतन्यदेवमां तो परम विश्रान्ति छे, बहार नीकळतां तो अशान्ति ज लागे छे.

हुं निर्विकल्प तत्त्व ज छुं. ज्ञानानंदथी भरेलुं जे निर्विकल्प तत्त्व, बस ते ज मारे जोईए छे, बीजुं कांई जोईतुं नथी. २०५.

ज्ञानीए चैतन्यनुं अस्तित्व ग्रहण कर्युं छे. अभेदमां ज द्रष्टि छेः ‘हुं तो ज्ञानानंदमय एक वस्तु छुं’. तेने विश्रान्तिनो महेल मळी गयो छे, जेमां अनंतो आनंद भरेलो छे. शान्तिनुं स्थान, आनंदनुं स्थानएवो पवित्र उज्ज्वळ आत्मा छे. त्यांज्ञायकमांरही ज्ञान