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बधुं करे छे पण द्रष्टि तो अभेद उपर ज छे. ज्ञान बधुं करे पण द्रष्टिनुं जोर एटलुं छे के पोताने पोता तरफ खेंचे छे. २०६.
हे जीव! अनंत काळमां शुद्धोपयोग न कर्यो तेथी तारो कर्मराशि क्षय थयो नहि. तुं ज्ञायकमां ठरी जा तो एक श्वासोच्छ्वासमां तारां कर्मो क्षय थई जशे. तुं भले एक छो पण तारी शक्ति अनंती छे. तुं एक अने कर्म अनंत; पण तुं एक ज अनंती शक्तिवाळो बधांने पहोंची वळवा बस छो. तुं ऊंघे छे माटे बधां आवे छे, तुं जाग तो बधां एनी मेळे भागी जशे. २०७.
बाह्य द्रष्टिथी कांई अंतर्द्रष्टि प्रगट थती नथी. आत्मा बहार नथी; आत्मा तो अंदरमां ज छे. माटे तारे बीजे क्यांय जवुं नहि, परिणामने क्यांय भटकवा देवा नहि; तेने एक आत्मामां ज वारंवार लगाड; वारंवार त्यां ज जवुं, एने ज ग्रहण करवो. आत्माना ज शरणे जवुं. मोटाना आश्रये ज बधुं प्रगट थाय छे. अगाध शक्तिवाळा चैतन्यचक्रवर्तीने ग्रहण कर. आ एकने ज ग्रहण कर. उपयोग बहार जाय पण चैतन्यनुं आलंबन एने अंदरमां ज लावे छे. वारंवार...वारंवार