Benshreena Vachanamrut-Gujarati (Devanagari transliteration). Bol: 213-214.

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बहेनश्रीनां वचनामृत
७३

लोकाग्रे विचरनारो लौकिक जनोनो संग करीश तो तारी परिणति पलटी जवानुं कारण थशे. जेम जंगलमां सिंह निर्भयपणे विचरे तेम तुं लोकथी निरपेक्षपणे तारा पराक्रमथीपुरुषार्थथी अंदर विचरजे. २१२.

लोकोना भयने त्यागी, ढीलाश छोडी, पोते द्रढ पुरुषार्थ करवो. ‘लोक शुं कहेशे’ एम जोवाथी चैतन्यलोकमां जई शकातुं नथी. साधकने एक शुद्ध आत्मानो ज संबंध होय छे. निर्भयपणे उग्र पुरुषार्थ करवो, बस! ते ज लोकाग्रे जनार साधक विचारे छे. २१३.

सद्गुरुना उपदेशरूप निमित्तमां (निमित्तपणानी) पूर्ण शक्ति छे पण तुं तैयार न थाय तोतुं आत्मदर्शन प्रगट न कर तो?? अनंत अनंत काळमां घणा संयोग मळ्या पण तें अंतरमां डूबकी मारी नहि! तुं एकलो ज छो; सुखदुःख भोगवनार, स्वर्ग के नरकमां गमन करनार केवळ तुं एकलो ज छो.

‘‘जीव एकलो ज मरे, स्वयं जीव एकलो जन्मे अरे!
जीव एकनुं नीपजे मरण, जीव एकलो सिद्धि लहे.’’