लोकाग्रे विचरनारो लौकिक जनोनो संग करीश तो तारी परिणति पलटी जवानुं कारण थशे. जेम जंगलमां सिंह निर्भयपणे विचरे तेम तुं लोकथी निरपेक्षपणे तारा पराक्रमथी — पुरुषार्थथी अंदर विचरजे. २१२.
लोकोना भयने त्यागी, ढीलाश छोडी, पोते द्रढ पुरुषार्थ करवो. ‘लोक शुं कहेशे’ एम जोवाथी चैतन्यलोकमां जई शकातुं नथी. साधकने एक शुद्ध आत्मानो ज संबंध होय छे. निर्भयपणे उग्र पुरुषार्थ करवो, बस! ते ज लोकाग्रे जनार साधक विचारे छे. २१३.
सद्गुरुना उपदेशरूप निमित्तमां (निमित्तपणानी) पूर्ण शक्ति छे पण तुं तैयार न थाय तो — तुं आत्मदर्शन प्रगट न कर तो — ?? अनंत अनंत काळमां घणा संयोग मळ्या पण तें अंतरमां डूबकी मारी नहि! तुं एकलो ज छो; सुखदुःख भोगवनार, स्वर्ग के नरकमां गमन करनार केवळ तुं एकलो ज छो.