Benshreena Vachanamrut-Gujarati (Devanagari transliteration). Bol: 215-216.

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बहेनश्रीनां वचनामृत

तुं एकलो ज मोक्ष जनार छो, माटे तुं आत्म- दर्शन प्रगट कर.

गुरुनी वाणी सांभळी विचार कर, प्रतीति कर ने ठर; तो तने अनंत ज्ञान ने सुखनुं धाम एवा निज आत्मानां दर्शन थशे. २१४.

मुमुक्षु जीव शुभमां जोडाय, पण पोतानी शोधकवृत्ति वही न जायपोताना सत्स्वरूपनी शोध चालु रहे एवी रीते जोडाय. शुद्धतानुं ध्येय छोडीने शुभनो आग्रह न राखे.

वळी ते ‘हुं शुद्ध छुं, हुं शुद्ध छुं’ करीने पर्यायनी अशुद्धता भुलाई जायस्वच्छंद थई जाय एम न करे; शुष्कज्ञानी न थई जाय, हृदयने भिंजायेलुं राखे. २१५.

संसारथी खरेखरा थाकेलाने ज सम्यग्दर्शन प्रगट थाय छे. वस्तुनो महिमा बराबर ख्यालमां आव्या पछी ते संसारथी एटलो बधो थाकी जाय छे के ‘मारे कांई जोईतुं ज नथी, एक निज आत्मद्रव्य ज जोईए छे एम द्रढता करी बस ‘द्रव्य ते ज हुं’ एवा भावे