Benshreena Vachanamrut-Gujarati (Devanagari transliteration). Bol: 221-225.

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बहेनश्रीनां वचनामृत
७७

सर्वस्वपणे उपादेय मात्र शुद्धोपयोग. अंतर्मुहूर्त नहि पण शाश्वत अंदर रही जवुं ते ज निज स्वभाव छे, ते ज कर्तव्य छे. २२१.

मुनिओ वारंवार आत्माना उपयोगनी आत्मामां ज प्रतिष्ठा करे छे. तेमनी दशा निराळी, परना प्रतिबंध विनानी, केवळ ज्ञायकमां प्रतिबद्ध, मात्र निजगुणोमां ज रमणशील, निरालंबी होय छे. मुनिराज मोक्षपंथे प्रयाण चालु कर्यां ते पूरां करे छे. २२२.

शुद्धात्मामां ठरवुं ते ज कार्य छे, ते ज सर्वस्व छे. ठरी जवुं ते ज सर्वस्व छे, शुभभाव आवे पण ते सर्वस्व नथी. २२३.

अंतरात्मा तो दिवस ने रात अंतरंगमां आत्मा, आत्मा ने आत्माएम करतां करतां, अंतरात्मभावे परिणमतां परिणमतां, परमात्मा थई जाय छे. २२४.

अहो! अमोघरामबाण जेवांगुरुवचनो! जो जीव तैयार होय तो विभाव तूटी जाय छे, स्वभाव प्रगट