विधिने जाणी नहि. २३४.
स्वतःसिद्ध वस्तुनो स्वभाव वस्तुथी प्रतिकूळ केम होय? वस्तुनो स्वभाव तो वस्तुने अनुकूळ ज होय, प्रतिकूळ होई शके ज नहि. स्वतःसिद्ध वस्तु स्वयं पोताने दुःखरूप होय शके ज नहि. २३५.
मलिनता टकती नथी अने मलिनता गमती नथी, माटे मलिनता वस्तुनो स्वभाव होई शके ज नहि. २३६.
हे आत्मा! तारे जो विभावथी छूटी मुक्तदशा प्राप्त करवी होय तो चैतन्यना अभेद स्वरूपने ग्रहण कर. द्रव्यद्रष्टि सर्व प्रकारनी पर्यायने दूर राखी एक निरपेक्ष सामान्य स्वरूपने ग्रहण करे छे; द्रव्यद्रष्टिना विषयमां गुणभेद पण होता नथी. आवी शुद्ध द्रष्टि प्रगट कर.
आवी द्रष्टि साथे वर्ततुं ज्ञान वस्तुमां रहेला गुणो तथा पर्यायोने, अभेद तेम ज भेदने, विविध प्रकारे जाणे छे. लक्षण, प्रयोजन इत्यादि अपेक्षाए गुणोमां