Benshreena Vachanamrut-Gujarati (Devanagari transliteration). Bol: 238.

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बहेनश्रीनां वचनामृत

भिन्नता छे अने वस्तु-अपेक्षाए अभेद छे एम ज्ञान जाणे छे. ‘आ आत्मानी आ पर्याय प्रगट थई, आ सम्यग्दर्शन थयुं, आ मुनिदशा थई, आ केवळज्ञान थयुंएम बधी महिमावंत पर्यायोने तेम ज अन्य सर्व पर्यायोने ज्ञान जाणे छे. आम होवा छतां शुद्ध द्रष्टि (सामान्य सिवाय) कोई प्रकारमां रोकाती नथी.

साधक आत्माने भूमिका प्रमाणे देव-गुरुना महिमाना, श्रुतचिंतवनना, अणुव्रत-महाव्रतना इत्यादि विकल्पो होय छे, पण ते ज्ञायकपरिणतिने बोजारूप छे कारण के स्वभावथी विरुद्ध छे. अधूरी दशामां ते विकल्पो होय छे; स्वरूपमां एकाग्र थतां, निर्विकल्प स्वरूपमां वास थतां, ते बधा छूटी जाय छे. पूर्ण वीतराग दशा थतां सर्व प्रकारना रागनो क्षय थाय छे.

आवी साधकदशा प्रगट करवायोग्य छे. २३७.

तारे जो तारुं परिभ्रमण टाळवुं होय तो तारा द्रव्यने तीक्ष्ण बुद्धिथी ओळखी ले. जो द्रव्य तारा हाथमां आवी गयुं तो तने मुक्तिनी पर्याय सहेजे मळी जशे. २३८.