Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

१५८ पुण्य बन्धा और आत्माका स्वरूप, अन्दर स्वानुभूति प्रगट नहीं हुयी तो वह सम्यक पुरुषार्थ नहीं है।

अथवा तो स्वानुभूतिके मार्ग पर हो तो वह सम्यकके मार्ग पर है, सम्यकत्व सन्मुख है। आत्मा कैसे पहचाना जाय? आत्माका स्वरूप क्या है? भेदज्ञानका अभ्यास करे, उस मार्ग पर जाय, उसका विचार, वांचन आदि करे तो वह मार्ग पर है। परन्तु शुभभावमें ही धर्म माने तो वह सम्यक पुरुषार्थ नहीं है।

मुमुक्षुः- बहिनश्री! स्वयं स्वभाव सन्मुख है कि नहीं, ऐसा उसको ख्याल आ जाता है कि स्वयं सम्यक सन्मुख है?

समाधानः- स्वयंका आत्मा स्वयंको जवाब दे कि इस मार्गसे.. ये स्वानुभूतिका ही मार्ग है। इसी मार्गसे स्वानुभूति प्रगट होती है, दूसरे मार्गसे नहीं होगी। भेदज्ञानके मार्ग पर, स्वभाव ग्रहण करनेके मार्ग पर, भेदज्ञानके मार्ग पर ही स्वानुभूति प्रगट होती है और स्वयं अपना जान सकता है कि इसी मार्गसे स्वानुभूति प्रगट होती है।

यदि नहीं जान सके तो... सब उसी मार्ग पर जाते हैं। पहलेसे स्वानुभूति हो नहीं जाती, परन्तु पहले स्वयं निर्णय करता है कि इसी मार्ग पर जाया जाता है। मार्गका स्वयंको ज्ञान होता है तो उसे मार्ग पर जाता है। अपना आत्मा जवाब देता है कि इसी मार्ग पर स्वानुभूति प्रगट होती है।

मुमुक्षुः- ऐसा स्वयंको ख्याल आ जाता है?

समाधानः- ख्याल आ जाता है कि इसी मार्गसे स्वानुभूति होती है। मुुमुक्षुः- मैं सच्चे मार्ग पर हूँ, ऐसा भी ख्याल आ जाता है?

समाधानः- हाँ, स्वयंको ख्याल आ जाता है।

मुमुक्षुः- बहिनश्री! कर्ता-कर्मकी भूल कैसी होगी?

समाधानः- मैं परद्रव्यका कर सकता हूँ, मैं परद्रव्यको बदल सकता हूँ, वह सब कर्ता-कर्मकी भूल है। मैं ज्ञायक हूँ, मैं दूसरेका नहीं कर सकता हूँ, परन्तु मेरे स्वभावका कार्य कर सकता हूँ। मेरे अंतरमें जो ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदि गुण है, अनन्त गुण हैं, उसे मैं प्रगट कर सकता हूँ। परन्तु मैं इस पुदगलके, शरीरके कार्य मैं नहीं कर सकता हूँ। वह सब कर्ता-कर्मकी भूल है।

बाहरमें मैंने किसीका अच्छा कर दिया, किसीको ये कर दिया, वह सब तो पुण्य- पाप अनुसार होता है। उसमें स्वयं निमित्तमात्र है। उसके भाव करता है, बाकी किसीका कर नहीं सकता है। उसके स्वयंके शरीरमें रोग आये तो भी वह कुछ नहीं कर सकता, तो दूसरा तो क्या कर सके? परद्रव्यका कुछ नहीं कर सकता।

विभाव भी उसका स्वभाव नहीं है, पुरुषार्थकी मन्दतासे वह उसमें जुडता रहता