तो उसमें अटक गया। ऐसे कहीं-कहीं अटक गया, मानों मैंने बहुत किया। लेकिन जबतक स्वयंको-चैतन्यको पहचाना नहीं है, अंतरमेंसे कुछ प्रगट नहीं हुआ या अंतरमें उसे कोई अपूर्वता आये तो उसे किसीको पूछने भी नहीं जाना पडे। उसके आत्मामेंसे ही ऐसा आये कि यही मार्ग है। अंतरमेंसे ऐसी कोई अपूर्वता और यथार्थ मार्गकी प्रतीति और ऐसा आनन्द आये की यही मार्ग है। जो भगवानने कहा वह यही मार्ग है, इसी स्वानुभूतिके मार्ग पर आगे बढा जाता है। उसका अंतरंग ही उसे कह देता है। ... अटक जाता है। कोई ज्ञानमें, कोई जूठे ध्यानमें, कुछ क्रियाओंमें, कुछ-कुछ थोडा-थोडा करके अटक जाता है। मूल वस्तुको पहिचाने बिना। बीचमें शुभभाव आये तो मैंने बहुत शुभभाव किये। मैंने बहुत दया, भक्ति, ये-वो, दान दिया, सब बहुत किया, मैंने बहुत धर्म किया। बाहरसे धर्म नहीं होता है, वह तो शुभभाव हो तो पुण्यबन्ध होता है। अंतरमेंसे शुद्धात्माको पहिचाने तो स्वभावमेंसे धर्म होता है। कहीं- कहीं बाहरमें अटक जाता है।
मुमुक्षुः- अपना अज्ञान ही उसमें कारण है या और कुछ?
समाधानः- नहीं, अपना ही कारण है, कोई अन्य कारण नहीं है। अपनी अज्ञानतासे ही स्वयं रखडा है। कोई दूसरा उसे रखडाता नहीं। कोई उसे कुछ नहीं कहता। कर्म तो निमित्तमात्र है। अपनी भ्रान्ति और अपनी भूलसे रखडा है। स्वयं भूल की है, स्वयं ही तोडे। गुरु यथार्थ मार्ग दर्शाये, मार्गको ग्रहण करना अपने हाथकी बात है। गुरुदेवने अनेक प्रकारसे स्वरूप समझाया है। अपूर्व मार्ग बताया है। ग्रहण करना अपने हाथकी बात है।
मुमुक्षुः- बहिनश्री! सम्यक पुरुषार्थ माने क्या? सम्यक पुरुषार्थ, सच्चा पुरुषार्थ- सत्य पुरुषार्थ माने क्या?
समाधानः- सम्यक पुरुषार्थ कि जिसके पीछे आत्मा प्रगट हो। आत्मा अनन्त गुणोंसे भरपूर है। आत्मामें अनन्त शक्तियाँ हैं। आत्मा जिसमें प्रगट हो वह सम्यक पुरुषार्थ है। जिस पुरुषार्थमें आत्मा प्रगट न हो, विकल्पका अभाव होकर निर्विकल्प दशा जो स्वानुभूतिका मार्ग है, वह प्रगट न हो, उस पंथ पर नहीं जाना हो और मात्र शुभभाव हो, जिस शुभभावसे पुण्यबन्ध हो, तो वह सम्यक पुरुषार्थ नहीं है। पुण्य बन्धे तो स्वर्ग मिलता है। वह सम्यक पुरुषार्थ नहीं है।
सम्यक पुरुषार्थ उसका नाम है कि जिसमें स्व-परका भेदज्ञान हो कि ये वस्तु मैं नहीं हूँ। मैं तो चैतन्य कोई अपूर्व वस्तु चैतन्य चमत्कारी, चैतन्य चिंतामणि वस्तु मैं हूँ। ऐसी कोई अन्दरसे वस्तु ग्रहण होकर पुरुषार्थ हो तो वह सम्यक पुरुषार्थ है। बाकी विकल्प मन्द किये, राग मन्द किया, सब किया, शुभभाव किये, परन्तु जहाँ