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मुमुक्षुः- खटक अंतरमें रखनी ही चाहिये।
समाधानः- अंतरमें वैसे खटक रखनी चाहिये। तो प्रयास होता है।
मुमुक्षुः- पूर्व जन्मका पुरुषार्थ होता, तब तो हो जाता।
समाधानः- परन्तु वर्तमान पुरुषार्थ तो करना पडता है न। पूर्वके संस्कार हो तो भी पुरुषार्थ तो वर्तमानमें करना पडता है। जब भी तैयार हो, जब जागे तब सवेरा। जब जागा तब सवेरा। जबसे गुरुकी वाणी सुनी और गुरुने मार्ग बताया तो पुरुषार्थ करना अपने हाथकी बात है।
मुमुक्षुः- कितने दिन तक ऐसा लग रहा है कि सब शून्य हो गया, कुछ नहीं रहा। ऐसा हो जाता है।
समाधानः- पुरुषार्थकी मन्दता है, रुचिकी मन्दता है। मन्दता है। तीव्रता करनी चाहिये। इस भवमें इतने काल सुना वह पूर्व ही हो गया। पूर्व पर्याय वह पूर्व। शरीरकी पूर्व पर्याय ... परिणामकी पूर्व पर्याय अर्थात जो काल गया वह सब काल पूर्व ही था। जब भी जागे, पूर्वके संस्कार उसमें मिला देना। पूर्वमें सुना वह सब। पुरुषार्थ करे तो पूर्वमें जो सुना उसका साथ मिले इसलिये वह पूर्वके संस्कार, दूसरा क्या है? वह पूर्व हो गया। गुरुदेवने जो यह मार्ग बताया, मार्ग सूझनेका रास्ता गुरुदेवने बताया, यह सब सुना वह सब पूर्वके संस्कार ही है।
मुमुक्षुः- आपको कैसा लगता है?
समाधानः- आत्मा अनुपम है तो उसकी पर्याय भी अनुपम है। उसकी अनुभूति- वेदन भी अनुपम। अनादिका वेदन है वह तो दुःखरूप आकुलतारूप है। अस्थिरतारूप है, आकुलतारूप है, खेदरूप है। अशान्ति है। जो नहीं हो सकता है, उसकी कर्ताबुद्धि- मैं करता हूँ, करता हूँ, ऐसी खेदबुद्धि करता है। वह तो अपूर्व है। अपूर्व शान्तिरूप है, अपूर्व ज्ञानरूप है। वह कोई बोलनेकी बात नहीं है। अपूर्व वस्तु है।
समाधानः- .. राग हूँ, द्वेष हूँ, विकल्पके साथ एकत्वबुद्धि, पर्याय ओर, क्षणिक पर्यायें होती हैं उतना मैं, परन्तु अखण्ड चैतन्य स्वभाव मैं हूँ, ऐसी दृष्टि (नहीं करता है)। स्वभावकी ओर जिसकी दृष्टि जाती है तो उसका क्रमबद्ध उसी ओर जाता है। मोक्षकी ओर क्रमबद्ध है।
मुमुक्षुः- और क्रमबद्धका स्वरूप उसीने जाना है।
समाधानः- उसीने सत्यरूपसे जाना है। जो पुरुषार्थ करता है, उसीने क्रमबद्धका स्वरूप जाना है, उसे ही क्रमबद्ध है। उसका सच्चा क्रमबद्ध है।
मुमुक्षुः- दूसरा क्रमबद्ध-क्रमबद्ध बोलता है, लेकिन उसका क्रमबद्ध मात्र कल्पना ही है।