Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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१५६अमृत वाणी (भाग-४)

तात्पर्य निकालना मुश्किल (पडे)।

समाधानः- द्रव्यार्थिकनयके चक्षु सर्वथा बन्द करके पर्यायार्थिकको देखे। परन्तु उसकी अपेक्षा तो हृदयमें रखनी चाहिये। द्रव्य और पर्याय दोनोंकी अपेक्षा समझे तो समझमें आये।

मुमुक्षुः- नय तो सापेक्ष ली है। नय तो सब सापेक्ष होते हैं। उसमें सर्वथा बन्द करना तो कैसे बने? फिर भी वहाँ ऐसे शब्द लिये हैं, सर्वथा बन्द करके।

समाधानः- सर्वथा बन्द करके ऐसा लिया है। उसमें अर्थ दूसरे प्रकारका लेना पडे, आँख बन्द करनी अर्थात।

मुमुक्षुः- आँख बन्द करनी माने क्या? दोनों जगह समान अर्थ करना अथवा आँख बन्द करनी उसका क्या करना?

समाधानः- मुख्य-गौण करना। आँख बन्द करनी यानी उसमें दूसरा तो कोई (अर्थ नहीं है)।

मुमुक्षुः- सर्वथा बन्द करना... ज्ञान कैसे बन्द हो? बन्द करना हो तो भी कैसे हो?

समाधानः- किस प्रकारका है, पर्यायका स्वरूप जाननेके लिये द्रव्यकी अपेक्षा एक ओर रखकर पर्यायका स्वरूप क्षणिक है और द्रव्यका स्वरूप शाश्वत त्रिकाल है। इस प्रकार उसका स्वरूप समझनेके लिये वह चक्षु बन्द करना। यह द्रव्यका स्वरूप अलग जातका है और पर्यायका स्वरूप अलग जातका है। अर्थात द्रव्यका जो त्रिकाल स्वरूप है, उसे लक्ष्यमें नहीं लेकरके पर्याय क्षणिक है, ऐसा समझना। इसलिये वह चक्षु बन्द करना। जो त्रिकालको (देखनेका) चक्षु है उसे बन्द करना और इसे उसके स्वरूपमें समझना। पर्यायको पर्यायके स्वरूपमें समझना, द्रव्यको द्रव्यके स्वरूपमें समझना। उसका स्वरूप समझनेके लिये उसके चक्षु बन्द करना, ऐसा अर्थ है।

इसका स्वरूप उसमें नहीं आता, उसका स्वरूपमें इसमें नहीं आता। इसलिये उसके चक्षु बन्द करना। किसीका स्वरूप किसीमें जाता नहीं। दोनोंका स्वरूप दोनोंमें रहता है। इसलिये उसका जैसा स्वरूप है, उस स्वरूपमें समझना। इसलिये उसके चक्षु बन्द करना, ऐसा उसका अर्थ है। त्रिकालके स्वरूपको उसमें (क्षणिकमें) प्रवेश नहीं होने देना और क्षणिकका स्वरूप त्रिकालमें प्रवेश नहीं होने देना, इस तरह दोनोंको भिन्न रखना।

मुमुक्षुः- बराबर है, बहुत स्पष्ट।

समाधानः- उसका स्वरूप उसमें। क्षणिकका स्वरूप उसमें नहीं आने देना और त्रिकालका स्वरूप उसमें (क्षणिकमें) नहीं आने देना। दोनोंको भिन्न रखना। चक्षु सर्वथा