Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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१५७
ट्रेक-

१५९ बन्द करना।

मुमुक्षुः- सर्वथा चक्षु बन्द करना, ऐसा शब्द वहाँ पडा है।

समाधानः- सर्वथा चक्षु बन्द (करना)। द्रव्यार्थिकनयके चक्षु सर्वथा बन्द करके पर्यायार्थिकको देखना। अर्थात त्रिकाल स्वरूप जो आत्माका है, त्रिकालके स्वरूपको पर्यायमें नहीं आने देना। पर्याय तो क्षणिक है, वर्तमानमें परिणमनेवाली है। इसलिये जैसी है वैसी वर्तमानमें परिणमती है, ऐसे समझना। और वर्तमानमें परिणमनेवाली है और वह त्रिकाल परिणमनेवाला है उसमें क्षणिक परिणमनेवाला है, ऐसा स्वरूप उसमें आने नहीं देना। ऐसा अर्थ समझना। पुनः द्रव्य ही पर्यायरूप परिणमता है, वह बात वहाँ अलग रख दी है।

मुमुक्षुः- .. रखकर ही आते हैं। अकेले कथनको पकडने जाय तो मुसीबत होगी।

समाधानः- सिर्फ शब्दोंको पकडे तो... उसमें ऐसा है.. गुरुदेव ऐसा कहते थे, कोई कहता है गुरुदेव ऐसा कहते थे। गुरुदेवका आशय समझना वह सत्य है। .. पूर्वक ही उनका परिणमन और कहनेकी शैली... वे स्वयं ही जब पद्मनंदी आदि सब पढते थे तब उछल जाते थे। और वे स्वयं ही जब निश्चयकी बात आये तो निश्चयकी बात जैसा हो वैसा बराबर पढते थे। इसलिये उनका हृदय सन्धियुक्त था। उनका पूरा परिणमन ही वैसा था। भले व्यवहारकी बात गौण करके कोई-कोई बार पढते थे। परन्तु जब भी वह पढते थे तब उसे ओप चढाकर पढते थे।

मुमुक्षुः- जगतको..

समाधानः- गुरुदेवका सब प्रताप है। तत्त्वदृष्टि तो अनादिसे जीवने जानी नहीं है। इसलिये तत्त्व तो गुरुदेवने खूब (दिया है)। अनादि कालसे तत्त्व ही समझमें नहीं आया है। मुख्य बात तो वह है। हजारों जीवोंको जागृत कर दिये। गुजराती, हिन्दी सबको।

मुमुक्षुः- आत्मामेंसे ज्ञान आता हो तो शास्त्र आदि पढना क्यों?

समाधानः- ज्ञान तो ज्ञानमेंसे ही आता है। जिसमें हो उसमेंसे आये, कुछ बाहरसे नहीं आता है। स्वयंको उतनी अंतरमें शक्ति नहीं है न। ज्ञानमेंसे ज्ञान.. आता है ज्ञानमेंसे, परन्तु शास्त्र निमित्त होते हैैं। उपादान अपना परन्तु उसमें शास्त्र निमित्त बनते हैं। वस्तुका स्वभाव क्या है उसे जाना नहीं है। भगवान क्या कहते हैं? वस्तु स्वरूप क्या है? मुक्तिका मार्ग क्या है? स्वयं अनजाना है। आचाया जो कह गये हैं, महा मुनिवरो, गुरुदेवने जो मार्ग बताया, भगवानकी वाणी-दिव्यध्वनिमें आया है, आचायाने शास्त्रोंमें लिखा है। शास्त्र निमित्त बनते हैं। उपादान अपना होता है। स्वयंने अनादिसे मार्ग जाना नहीं है। भ्रान्तिमें पडा है। मुक्तिका मार्ग कैसा है, यह मालूम नहीं है। इसलिये शास्त्र