Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

१६० सम्यग्दर्शन प्राप्त कर सके? पूर्व संस्कार कुछ भी नहीं हो तो भी।

समाधानः- मनुष्य होकर प्राप्त कर सकता है। आत्मा है न। उसे पूर्व संस्कार हो तो ही (प्राप्त हो ऐसा नहीं है)। वह जबसे करे तबसे संस्कार। जबसे करे तबसे शुरूआत होती है। मनुष्य भव प्राप्त कर तुरन्त प्राप्त कर सकता है। निगोदमेंसे निकलकर हुए हैं, फिर राजाके कुंवर हुए हैं, मुनि हो गये। उसे कोई लंबा काल नहीं चाहिये। आत्माका स्वभाव स्वयं स्वभावसे ही भरा है। स्वभावमेंसे स्वभाव प्रगट होता है। इसलिये उसे कालकी या लंबे संस्कारकी जरूरत नहीं पडती। जबसे करे तबसे संस्कार। स्वयं संस्कारसे ही भरा है। स्वयं स्वभाव ही ऐसा है कि उसमेंसे प्रगट हो।

.. लागू नहीं पडता। पानीका शीतल स्वभाव उसमेंसे प्रगट होता है। वह सिर्फ मलिन हो गया है। इसलिये उसमें अमुक औषधि डाले तो निर्मलता प्रगट होती है। वैसे यहाँ स्वयंमें भरा है, कुछ बाहरसे नहीं लाना पडता। बाहर वाणी मिले, गुरुका उपदेश मिले, देव मिले एकदम स्वयं पुरुषार्थ करे तो स्वयं अन्दरसे प्रगट होता है। वह स्वयं अपनेमेंसे उछलता है।

जैसे कहते हैं न, समुद्र मध्यबिन्दुमेंसे उछलता है। वैसे अपना स्वभाव स्वयं पुरुषार्थ करे तो अपनेमेंसे प्रगट होता है। अनादि कालसे उसका अभ्यास नहीं है इसलिये उसे देव-गुरु-शास्त्र आदि निमित्त मिलते हैं।

मुमुक्षुः- ऐसा शक्तिवान पदार्थ है, उसे ख्यालमें नहीं आया?

समाधानः- अज्ञानके कारण ही ख्यालमें नहीं आया। अनादिकालसे उसीमें जो प्रवाह है उस प्रवाहमें चला जाता है। अनादिसे वापस ही नहीं मुडता है। कोई दर्शानेवाले मिले तो उसे अन्दर रुचि हो तो वह समझता है, नहीं तो अपने प्रवाहमें अनादिसे चला जाता है। जो प्रवाह चला, शुभाशुभ भावका प्रवाह चला उसमें चला जाता है। शुभभाव करके स्वर्गमें गया। तो स्वर्गका भव अनन्त कालमेंं अनन्त बार मिले। तो भी उसीमें परिभ्रमण करता है। सब भव उसने अनन्त बार किये।

मुमुक्षुः- पर्याय जो शुद्धतारूप रहनी चाहिये वह क्यों नहीं टिकती?

समाधानः- उसका एक ही कारण है, स्वयंका ही कारण है, उसे दूसरा कोई कारण लागू नहीं पडता। अपनी मन्दता है, पुरुषार्थकी मन्दता है। दूसरा कोई उसे रोकता नहीं, कर्म रोकता नहीं, कोई रोकता नहीं है। अपनी मन्दताका कारण है। स्वयं बाहर दौडता है और अतंरमें जाना वह अपने हाथकी बात है। अनादि कालसे स्वयं ही स्वंयके कारण जन्म-मरण होते हैं और जीव मोक्ष जाता है तो अपने पुरुषार्थसे जाता है। स्वयं करे तो होता है। स्वयं परिणति बदले, मुक्तिकी पर्याय प्रगट करनी वह जीवकी अपने हाथकी बात है। और बाहर जो एकत्वबुद्धि करता है वह भी अपना कारण