Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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१६४अमृत वाणी (भाग-४)

है, अन्य किसीका कारण नहीं है। ... मार्ग बताया, परन्तु पुरुषार्थ करना अपने हाथकी बात है। गुरुदेवने कहा है, तू स्वयं स्वतंत्र है। इसलिये तू कर तो होगा।

मुमुक्षुः- ...

समाधानः- करना तो स्वयंको ही है। पूरा बदलाव लाना है, तीव्र हो तो होता है। जैसा कारण अपना वैसा कार्य आवे। मन्द कारण हो तो मन्द कार्य आवे और तीव्र कारण हो तो तीव्र आवे। भेदज्ञान तो स्वयं स्व-परको दोनोंको भिन्न करना है। स्वभाव और स्वभावको। जोरदार कारण हो, तीव्र पुरुषार्थ हो तो हो सकता है। लगन और उतना पुरुषार्थ हो तो होता है। उसकी झंखना, क्षण-क्षणमें उसकी झंखना हो तो होता है।

.. भावना करते रहना, पुरुषार्थ करना अपने हाथकी बात है। न हो तब तक भावना करते रहना। शुद्धात्मा कैसे प्रगट हो, उसकी। पुरुषार्थका अभ्यास करना। न हो तो भावना करनी। उसका भेदज्ञानका अभ्यास क्षण-क्षणमें करे, भावना करता रहे, पुरुषार्थ हो तो करे, न हो तो भावना रखनी। ये चैतन्यका स्वभाव, यह विभाव स्वभाव है। विभाव आकुलतारूप है, चैतन्यका स्वभाव शान्तिरूप, आनन्दरूप, ज्ञाता स्वभाव ज्ञायक है। परको कर नहीं सकता, स्वयं अपने स्वभावका कर सकता है। विभाव परिणाम सब आकुलतारूप है। स्वयं शान्तिरूप और अपनेमें परिणमन करनेवाला है। पर पदार्थकी ओर उसकी एकत्वबुद्धि करता है, वह उसकी भूल और भ्रान्ति है। उसमेंसे कैसे छूटकर भेदज्ञानका अभ्यास करना, बस, उसका अभ्यास करना, उसकी भावना करनी। पुरुषार्थ जो हो सके वह करना। बाकी पुरुषार्थका कारण अपनी मन्दताका कारण है, नहीं होता है वह। तीव्रता हो तो होता है। परन्तु उसके लिये कोई आकुलता काम नहीं करती। उसकी भावना रखकर धैर्य रखकर शान्तिसे कार्य हो ऐसा है।

समाधानः- .. भावना रखनी। तीव्रता हो तो ... स्वभाव ही ऐसा है। गुरुदेवने भवका अभाव होनेका मार्ग बताया। जन्म-मरण कैसे टले? मुक्तिका मार्ग अंतरमें है। अंतरमेंसे खोजनेका प्रयत्न करना चाहिये। इस पंचमकालमें गुरुदेव मिले तो मुक्तिका मार्ग दर्शाया। .. दृष्टि करवायी, चैतन्यको कोई पहचानता नहीं था। बाहरसे क्रिया करे तो धर्म होता है, ऐसा मानते थे।

... अनन्त जन्म-मरण किये उसमें इस आत्माको पहचानना। आत्मा शाश्वत है। कोई अदभूत आत्मा है। ज्ञायकका रटन रखना। ज्ञायक कोई अलग (है)। उसमें आनन्द, उसमें अनन्त गुण, सब उसमें है। ये विभाव स्वभाव आत्मा नहीं। उसका भेदज्ञान क्षण- क्षणमें करना। विभावसे विरक्ति हो, स्वभावकी महिमा आवे। उसके लक्षणसे पहचानना कि यह .. ही है। जो जाननेवाला, जिसमें चेतनता है, जाननेवाला है वह आत्मा