Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi). Track: 161.

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 1019 of 1906

 

अमृत वाणी (भाग-४)

१६६

ट्रेक-१६१ (audio) (View topics)

समाधानः- ... परन्तु वह तो वहीका वही है, अन्य नहीं है। जो स्वयंकी स्वप्रकाशनकी दशामें और परप्रकाशनकी दशामें, दोनोंमें एक ही है, अन्य कोई ज्ञायक नहीं है। ज्ञायक जो है वही है। जो ज्ञायक स्वानुभूतिमें ज्ञात हुआ वह ज्ञायक, और जो ज्ञायक, बाहर उपयोग जाय तो भी ज्ञायक, वह दोनों ज्ञायक तो एक ही है। अन्य ज्ञायक नहीं है, ज्ञायक तो वहीका वही है। कोई भी दशामें ज्ञायक वहीका वही है। कोई भी दशा, प्रमत्त-अप्रमत्तकी दशा हो, चौथे गुणस्थानकी दशा हो, पाँचवे गुणस्थानकी दशा हो, कोई भी हो, तो ज्ञायक पर जो दृष्टि है, ज्ञायककी जो धारा है, ज्ञायक शाश्वत जो अनादिका है, वह ज्ञायक तो वहीका वही है, अन्य ज्ञायक नहीं है। ज्ञायक वहीका वही है। स्व-पर प्रकाशनकी दशामें ज्ञायक (वही है)। अपनी ओर स्वानुभूतिके कालमें अथवा बाहर उपयोग हो तब भी ज्ञायक तो वही है, ज्ञायक कोई अन्य नहीं है। ज्ञायक अन्य नहीं है। ज्ञायक वहीका वही है।

मुमुक्षुः- वह ज्ञायक यानी ध्रुव ज्ञायक लेना या पर्यायमें जो ज्ञायकता प्रगट हुई वह लेना?

समाधानः- जो प्रगट हुआ वह ज्ञायक और अनादिका ज्ञायक, दोनों अपेक्षा उसमें है। उसे अनादिका ज्ञायक है, परन्तु उसका वेदन उसको कहाँ है? इसे वेदनपूर्वकका ज्ञायक है। अनादिका तो है ही, परन्तु यह प्रगट हुआ ज्ञायक है। अपने स्वरूपमेंसे कहीं बाहर नहीं आता है, ज्ञायक वह ज्ञायक ही है। दीपक स्वयं अपनी... दीपकको प्रकाशित करे या परको प्रकाशित करे, दीपक दीपक ही है। (वैस) ज्ञायक ज्ञायक ही है। ज्ञायक सो ज्ञायक ही है।

... पर दृष्टि नहीं है, परन्तु ज्ञायक पर दृष्टि है। ज्ञायक तो ज्ञायक ही है, बस! हमें ज्ञायक प्राप्त हो। ज्ञायककी परिपूर्णता प्राप्त हो। पर्याय पर लक्ष्य नहीं है। "जो ज्ञात वो तो वोही है।' ज्ञायक सदाके लिये ज्ञायक वह ज्ञायक ही है।

मुमुक्षुः- आत्माके और पर्यायके प्रदेश भिन्न मानता है। रागके जो प्रदेश है, यदि रागके प्रदेशको भिन्न नहीं माने तो राग चला जाय तो आत्मा भी चला जाय। उसके प्रदेश चले जाय तो आत्माका भी चले जाय। तो भावभेदसे आत्माके प्रदेश भिन्न