Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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Apne PURUSARTH Ki Mandta (BHANG) Se Hi RAAG Hota Hai.
अमृत वाणी (भाग-४)

१६८

मुमुक्षुः- भावभेद मानो तो ही उसका फैंसला होगा।

समाधानः- हाँ, तो ही फैंसला होता है। वह है, वह उसकी पर्याय सत है ऐसा बतानेके लिये है। परन्तु उसके ज्ञानमें ऐसा है कि ये भिन्न है-भिन्न है, भावभेद तो वैसे ही रहता है कि यह भिन्न है, यह भिन्न है। भेदज्ञान करनेवालेको ऐसा ही होता है कि ये राग भिन्न है और ज्ञान भिन्न है। राग भिन्न और ज्ञान भिन्न है। यह मैं ज्ञान हूँ और यह राग है। भावभेदसे भेद होनेके कारण वह भिन्न ही है। परन्तु अस्थिरता है वह उसके ज्ञानमें रहता है, वह मेरे पुरुषार्थकी मन्दतासे होता है। वह चैतन्यकी पर्यायमें होता है। परन्तु मेरा स्वभाव नहीं है।

मुमुक्षुः- बराबर बैठता है। प्रदेश दोनोंके भिन्न माननेमें तो आये तो दो द्रव्य हो जाय।

समाधानः- दो द्रव्य ही भिन्न हो जाते हैं।

मुमुक्षुः- व्यवस्था टूट जाय।

समाधानः- सब व्यवस्था टूट जाय। उसका वेदन चैतन्यको हो ही नहीं तो विभावका वेदन... स्वभावपर्यायकी तो एक अलग बात है कि वह स्वभावकी पर्याय है। परन्तु ये विभाव है, उसका भले क्षेत्रभेद हो, क्योंकि वह निमित्त-ओरसे होता है। परन्तु पुरुषार्थकी मन्दतासे अपनी परिणति होती है, उतना उसे लक्ष्यमें रखना चाहिये। नहीं तो पुरुषार्थ करना ही नहीं रहता है।

मुमुक्षुः- अभी मेरी एक जगह बात हुयी, सत्संगमें चर्चा हुयी तो उसमें ऐसी बात आयी, उस भाईने ऐसे बात कही कि, आज तक जो कुछ किया है, उस पर रेखा नहीं खीँची जाय, चौकडी मारनेमें नहीं आये तो निश्चय प्रगट नहीं होता। अर्थात मन्द कषाय करते.. करते.. करते... धर्म प्रगट हो जायगा, या धारणा ज्ञान मजबूत करते-करते निश्चय प्रगट हो जायगा, ऐसा तीन कालमें बने नहीं। तो आपने एक बार कहा था कि, धारणा ज्ञान भी मजबूत हो तो दूसरे भवमें संस्कारूपमें काम आयेगा। तो वह आश्वासनरूप है या हकीकतरूप है?

समाधानः- नहीं, नहीं। धारणाज्ञान यानी वह धोखनेरूप ज्ञान समझना कि यह अजीव है, अजीव है, ऐसे। धारणाज्ञान यानी वैसा ज्ञान। धारणाज्ञान या कषाय मन्द करेंगे तो धर्म होगा, मन्दता उसका साधन है, ऐसी मान्यतासे उसे नुकसान है। वह उसे साधन नहीं होता। धारणाज्ञान उसे वास्तविक साधन नहीं होता। उसका वास्तविक साधन धारणाज्ञान नहीं, परन्तु अंतरमें स्वयं दृष्टि करे, अपना ज्ञान स्वयंका साधन होता है, परन्तु बीचमें वह आता है।

धारणाज्ञान यानी रटा हुआ ज्ञान ऐसा नहीं। परन्तु मैं यह चैतन्य हूँ, यह स्वभाव