Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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भिन्न है, यह विभाव भिन्न है। ज्ञानने स्वयंने बुद्धिसे जो नक्की किया है, वह नक्की किया है उसका अभ्यास करता है। धारणाज्ञान, बहुत लोग शास्त्र धोख लेते हैं, ऐसा धारणाज्ञान काम नहीं आता। बीचमें उसे जानपना है उतना उसे कुछ निमित्त बने, बाकी (कोई कार्यकारी नहीं है)।

परन्तु यह जो स्वयं अभ्यासपूर्वक करता है, वह उसे वास्तविक साधन तो नहीं है। वास्तविक साधन तो उसका जो स्वभाव है वही उसे साधन होता है। परन्तु वह बीचमें आता है। उसे व्यवहारसे साधन कहनेमें आता है। व्यवहार साधन। व्यवहार साधन न कहे तो फिर... पहलेसे तो वह अंतरमें जा नहीं सकता है, इसलिये मुमुक्षुको क्या करना रहता है? यथार्थ रुचि और मैं चैतन्य हूँ, ऐसी भावना करे वह तो बीचमें आये बिना नहीं रहता।

मुमुक्षुः- आये बिना रहता नहीं, वह बात तो बराबर है लेकिन उसे साधन मानने जाय तो ...

समाधानः- नहीं, वास्तविक साधन है ऐसा नहीं। मूल साधन तो द्रव्य स्वभावमेंसे पुरुषार्थ उठकर, अंतरमेंसे जो उठे वह वास्तविक साधन होता है। परन्तु वह बीचमें आता है, व्यवहार साधन कहनेमें आता है।

जैसे अनादि कालसे गुरुका उपदेश और जिनेन्द्रका उपदेश उसे निमित्तरूपसे देशनालब्धि होती है, तो वह भी उसे एक साधन निमित्तरूपसे कहनेमें आता है। उपादान होता है अपनेसे, परन्तु अनादि कालसे ऐसा सम्बन्ध है कि बीचमें गुरुका उपदेश और जिनेन्द्रका उपदेश, अनादि कालका अनभ्यासी (जीव है), जिसे कुछ प्रगट नहीं हुआ, उसे एक बार ऐसी देशना मिलती है, अन्दरसे देशना लब्धि ग्रहण होती है स्वयंसे, उपादान स्वयंका है परन्तु उसमें निमित्त जिनेन्द्र देव और गुरुका बनता है, ऐसा निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध है। वैसे जो स्वयं रुचि करता है, मात्र धारणाज्ञान (करता है), उसे रुचि ही नहीं है, ऐसा धारणाज्ञान धोख लिया है, वह नहीं। परन्तु वह बुद्धिसे नक्की करता है कि मैं यह ज्ञान हूँ, दर्शन हूँ, चारित्र हूँ ऐसे जो भेदके विकल्प आते हैं, वह विकल्प तो बीचमें आये बिना नहीं रहते। परन्तु वह विकल्प उसे वास्तविक साधन होता है या भेद उसे वास्तविकरूपसे साधन होता है, ऐसा नहीं है।

साधन तो अपनी परिणति जो अंतरमेंसे उछलती है वही उसका साधन है। परन्तु वह बीचमें आता है। वह बीचमें आये बिना नहीं रहता। जैसे निमित्त-उपादानका सम्बन्ध गुरु एवं स्वयंकी देशनालब्धिका है, वैसे ही यह ज्ञान हूँ, दर्शन हूँ, चारित्र हूँ, साधनामें ऐसे भेदविकल्प आये बिना नहीं रहते।

जो स्वानुभूति करे उसे जो द्रव्य पर दृष्टि है, उसे भी ऐसे भेद विकल्प बीचमें