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बीचमें निर्विकल्प दशा आती है? अथवा कितना समय नहीं आये तो वह टिक सके?
समाधानः- उसकी अमुक जातकी दशा होती है उस अनुसार आती है। किसीको जल्दी आये, किसीको लंबे समय बाद आये। उसका निश्चित नहीं होता। किसीकी परिणति एकदम स्व-ओर मुडी हुई हो तो जल्दी आती है, किसीकी परिणति अमुक कायामें रुका रहे तो उसे अमुक कालके बाद आती है।
मुमुक्षुः- उसकी कोई हद है? कोई लिमिट है कि दो-चार-छः महिनेमें जैसे कषाय पलटा नहीं खाये.. छः महिनेमें निर्विकल्पता नहीं आये तो ज्ञानसे च्युत हो जाय?
समाधानः- अमुक समयमें आना तो चाहिये ही, ऐसा नियम तो है।
मुमुक्षुः- ऐसा पूछना चाहते हैं कि, पाँच-दस साल तक न आये, ऐसा हो सकता है?
समाधानः- नहीं, ऐसा नहीं होता। पाँच-दस साल तक नहीं आये ऐसा नहीं होता।
मुमुक्षुः- क्षायिक समकिती जो लडाईके मैदानमें जाते होंगे तो उन्हें निर्विकल्पता लडाईके मैदानमें आये?
समाधानः- उसे पाँच-दस साल निकल जाय, पाँच साल (निकल जाय) ऐसा नहीं बनता। लडाईके मैदानमें परिणति पलट जाय तो आये भी। न आये ऐसा नहीं बनता। एक श्रावकका आता है न? लडाईमें बैठे-बैठे विचार पलट गये तो मुनिपना ले लूँ, ऐसा विचार आया। लोंच करता है उस वक्त। ऐसा हो जाता है। लडाईके मैदानमें भी अंतर्मुहूर्तमें भाव पलट सकता है।
मुमुक्षुः- और लडाई कहाँ चौबीस घण्टे चलती है।
समाधानः- चौबीस घण्टे लडाई थोडे ही चलती है। दो राजके कुँवर घोडे पर बैठे थे और उन्हें विचार आ गया कि ये क्या लडाईके कार्य? मुनिपनाकी भावना होती है, अंतरमेंसे एकदम परिवर्तन हो जाता है। आये ही नहीं ऐसा नहीं होता।
वैसे स्वानुभूति न आये ऐसा नहीं होता। शास्त्रमें उसका नियमित काल आता नहीं, परन्तु पाँच साल जितने वर्ष नहीं निकल जाते। उसे अमुक महिनोंमें, अमुक समयमें ही आती है, उतना लम्बा काल नहीं लगता। कितनोंको तो बहुत जल्दी आती है। गृहस्थाश्रममें रहनेवाले हो तो भी उसे इतना लम्बा काल नहीं चला जाता।
मुमुक्षुः- मेरी चर्चा यह है कि क्षयोपशम समकितीमें तारतम्यताके भेद पडते हैं, इसलिये उसमें तो आना जरूरी है। परन्तु क्षायिक समकितीको देर भी लगे, उसमें कोई नियम नहीं है।