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वाणी सुनी है, सब किया है। जिनेन्द्र देव, गुरु, शास्त्र सबको याद करना। गुरुदेवने आत्माको प्राप्त करनेका अपूर्व मार्ग बताया है, वह याद करना। शरीर और आत्मा दोनों तत्त्व भिन्न हैं। चैतन्यतत्त्व कोई अपूर्व है, उसकी महिमा रखनी। वही महिमा करने जैसा है। अंतरमें गुरुकी महिमा रखनी। दो तत्त्व भिन्न हैं। उसका भेदज्ञान (करना)। स्वानुभूति कैसे हो? मुक्तिका मार्ग कैसे प्रगट हो? वह सब अन्दर रटन करना। उसकी रुचि रखनी। समय मिले तब वांचन करना। टेप सुनना, वांचन करना। वही संस्कार कैसे दृढ रहे, वह रखना। बारंबार उसे याद करते रहना।
मुमुक्षुः- भावसे तो एक पल भी दूर नहीं हुआ जाता। सततरूपसे आपके साथ ही..
समाधानः- वही भावना रखनी। अनन्त कालमें सब मिला, एक जिनेन्द्र देव... शास्त्रमें आता है कि सम्यग्दर्शन जीवने प्राप्त नहीं किया। अनन्त कालमें जिनेन्द्र देव, गुरु आदि सब मिलना मुश्किल है। वह मिले तो अंतरसे स्वयंने ग्रहण नहीं किया है। तो वह कैसे ग्रहण हो? गुरुदेवने जो स्वरूप बताया वह कैसे ग्रहण हो? सम्यग्दर्शनका क्या स्वरूप बताया है, वह सब याद करना। ऐसे पंचमकालमें ऐसे गुरु मिले, ऐसा मार्ग मिला, ऐसा अपूर्व मार्ग बताया तो इस मनुष्यजीवनमें कुछ अंतरमें रुचि दृढ हो वह रखना।
मैं किसी भी क्षेत्र होऊँ, परन्तु मुझे आपके पादपंकजकी भक्ति मेरे हृदयमें रहो। ऐसे अंतरमें देव-गुरुकी भक्ति और चैतन्यदेवकी भक्ति, चैतन्य मेरे हृदयमें रहना, देव- गुरु मेरे हृदयमें रहना। ... निवासमें होऊँ, ऐसा शास्त्रमें आता है। प्रभु! आप मेरे हृदयमें रहना और एक आत्मा मेरे हृदयमें रहना। ... सब याद करना।
मुमुक्षुः- वह तो अपूर्व काल था।
समाधानः- हाँ, अपूर्व काल था। यात्रा आदि.. उस वक्त छोटी थी न यात्राके समय? ... याद करना। ऐसा करके अन्दर उल्लास रखना। बस! ऐसा ही मेरे हृदयमें रहना। वह सब प्रसंग और चैतन्यदेव कैसे प्राप्त हो, उसकी भावना रखनी। वह सब करते रहना।
अनन्त कालमें जन्म-मरण करते.. करते.. करते.. बडी मुश्किलसे मनुष्यभव मिलता है। उसमें भी इस पंचमकालमें गुरुदेव मिले वह तो महाभाग्यकी बात! ऐसे गुरुदेव मिले, उनका सान्निध्य मिला, उनकी वाणी मिला वह तो महाभाग्यकी बात है। तो उसमेंसे आत्मा कैसे समझमें आये, उसकी भावना रखनी।
मुमुक्षुः- ज्यादासे ज्यादा..
समाधानः- उसका रटन करते रहना। आत्माका क्या स्वरूप है? आत्मा ज्ञायक