Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-४)

१७८ है। उसके लिये उसके विचार करना। गुरुदेवने क्या कहा है, उसका चिंतवन करना। उसकी रुचि अंतरमें रखनी। चाहे किसी भी प्रसंगमें मुझे चैतन्यकी रुचि रहो। कहीं तन्मयता या बाह्य प्रसंगोंमें रुचि नहीं बढकरके चैतन्यकी रुचि विशेष (रूपसे होनी चाहिये)। आत्मामें सर्वस्व है, बाहर कहीं कुछ नहीं है। ऐसी रुचि रखनी।

एक देव-गुरु-शास्त्र जीवनमें सर्वस्व और एक आत्मा मुख्य सर्वस्व है। कहीं ओर रुचि नहीं बढकरके आत्माकी रुचि और देव-गुरु-शास्त्रकी ओर ज्यादा (रुचि) रहे ऐसी भावना रखनी। ... के लिये प्रयत्न होना चाहिये। आत्माका लक्षण क्या? ज्ञायक लक्षण, यह विभाव लक्षण। उसे भिन्न करनेकी अंतरमें कितनी तैयारी हो तब वह भिन्न पडता है। समझन हो और अन्दरसे अपनी कितनी पुरुषार्थकी तैयारी हो, तब होता है। वह न हो तबतक उसकी भावना रखनी।

... आत्मामेंसे प्रगट होता है। कोई अपूर्वता.. आत्माका ज्ञान अपूर्व, आनन्द अपूर्व, सब आत्मामेंसे प्रगट होता है। परन्तु उसका पुरुषार्थ धारावाही हो तब होता है। वह न हो तबतक भावना रखनी।

मुमुक्षुः- ... एक ही रास्ता है। बाहर....

समाधानः- वह बात सच्ची है। अनादिका अभ्यास है इसलिये कहीं-कहीं हो जाय। परन्तु प्राप्त करनेका रास्ता तो एक ही है।

मुमुक्षुः- बाहर कहीं रुचि और मोह, देखकर चौंधिया नहीं जाते।

समाधानः- गुरुदेवने ऐसे संस्कार, उनकी वाणीसे ऐसे संस्कार डल गये हैं कि दूसरेमें जीव जाता नहीं। अंतर अपूर्व रुचिसे, सच्चा रुचिसे जिसने सुना हो..

मुमुक्षुः- भक्ति करते हो, एकदम महिमा आती हो, ऐसा होता है कि दो भाव एकसाथ चलते हो, ऐसा लगता है। क्या करना उसके लिये? जो पढा होता है वह भी बराबर याद होता है कि यही पढा है। फिर भी बाह्य वस्तुका विचार आ जाता है।

समाधानः- अन्दर सब संस्कार पडे हैं, वह आ जाते हैं। ज्यादा दृढता करनी। वांचन आदिकी ज्यादा दृढता करनी। अन्दर दूसरे विचारोंका जोर हो जाता है। उसमें उपयोग तो अंतर्मुहूर्त-अंतर्मुहूर्तमें बदलता रहता है। इसलिये ऐसा लगता है कि यह विचार और वह विचार दोनों साथमें आते हैं। साथमें नहीं, अन्दर होता है क्रमसर, परन्तु उसे साथमें लगता है। परन्तु उपयोग एकदम पलटता है न, (इसलिये ऐसा लगता है)। अभी यह पढा हो उतनेमें दूसरे विचारमें चढ जाय। जीवका उपयोग पलटता रहता है। जो संस्कार है पूर्वके, वह संस्कार आ जाते हैं। ज्यादा दृढता करनी। विचारमें, दर्शनमें। स्थिर नहीं हुआ हो इसलिये दूसरे विचार आ जाय। अन्दर संस्कार पडे हैं।

मुमुक्षुः- बहुत बार तो एकदम ऐसा होता है कि ऐसे वांचनके साथ ऐसा दिमाग