ग्रहण करनेमें अनन्त काल नहीं लगता। अनन्त काल रखडनेमें लगा, लेकिन स्वभाव प्रगट करनेमें अनन्त काल नहीं लगता। यदि स्वभावको ग्रहण करे तो बहुतोंको अंतर्मुहूर्तमें हो जाता है और बहुतोंको काल लगे तो थोडे भवमें भी उसे मोक्ष, केवलज्ञान होता है। और सम्यग्दर्शन तो यदि स्वयं पुरुषार्थ करे तो उसे हो सकता है। इस कालमें भी हो सकता है।
मुमुक्षुः- आपने तो छोटी उम्रमें प्राप्त कर लिया। और आपकी देशना सुने तभी कुछ लगता है, बाकी तो हम जैसोंको कुछ मालूम नहीं पडता है, सूझ नहीं पडती कि कैसे किस प्रकारसे कैसे बात करनी, उतना गहन तत्त्व लगता है।
समाधानः- स्वभाव आत्माका गहन ही है। अनेक जातकी महिमाओंसे भरा हुआ, गहनतासे भरा हुआ स्वभाव है।
मुमुक्षुः- प्रसन्न चित्तसे इस आत्माकी बात सुनी हो, उसे भी मुक्ति समीप है।
समाधानः- प्रसन्न चित्तसे आत्माकी वार्ता सुनी तो भावि निर्वाण भाजनम। भविष्यमें निर्वाणका भाजन बनता है। कोई अपूर्व रीतसे। गुरुदेवने अपूर्व वाणी बरसायी। उसे अपूर्व महिमा आये कि यह वस्तु कोई अलग ही है। मैं जिस मार्ग पर हूँ, वह यह नहीं है। कोई अंतरका मार्ग है। उसे आत्मामेंसे महिमा ही कोई अलग आती है। ऐसी प्रसन्न चित्तसे अपूर्व रीतसे सुना हो तो भावि निर्वाण भाजनम। भविष्यमें उसे चैतन्यकी ओर पुरुषार्थ उठनेवाला ही है और अवश्य भावि निर्वाण-भविष्यमें निर्वाणका भाजन है। बहुत बार अपनेआप (सुना हो), परन्तु कोई अपूर्व रीतसे सुना नहीं है। ऐसे अपूर्व रीतसे, प्रसन्न चित्तसे सुने तो भविष्यमें निर्वाणका भाजन होता है।
मुमुक्षुः- ... बात तो सम्यग्दृष्टि पुरुष आप जैसे कर सको। परन्तु ऐसा योग न हो तो क्या करें?
समाधानः- जिसकी तैयारी हो उसे बाहर ऐसे निमित्त मिल ही जाते हैं। इस पंचम कालमें..
मुमुक्षुः- ... आपका निमित्त मिल गया, हमको तो ऐसा लगता है। अन्दरसे ऐसा लगता है कि आपकी देशना... उनकी ऐसी कोई पात्रता हो गयी है।
समाधानः- महादुर्लभ था, उसमें गुरुदेवका इस पंचम कालमें जन्म हुआ। कितने जीवोंकी तैयारी (हो गयी)। उनकी वाणी ऐसी अपूर्व थी। कितने ही जीवोंको आत्मामें अपूर्वता लगती है कि ये कुछ अलग कहते हैैं। चाहे जितना बडा समुदाय हो, कोई समझे न समझे तो भी ऐसे प्रसन्न चित्तसे सुनते हों।
मुमुक्षुः- गुरुदेवकी वाणी..
समाधानः- कुछ अलग ही प्रकारसे ललकारके कहते थे। उनका प्रताप है। उनके