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आकुलतारूप है, वह हेयबुद्धि। मेरा स्वभाव नहीं है। शुभका स्वभाव भिन्न और मेरा स्वभाव भिन्न है। मैं ज्ञायक आनन्दसे भरा हुआ और यह शुभभाव है वह तो आकुलतारूप है। स्वभाव विपरीत है। उसका स्वभावभेद है। इसलिये वह मेरेसे भिन्न है। वह मुझे आदरणीयरूप है, ऐसा नहीं है। वह प्रवृत्तिरूप है, मेरा स्वभाव तो निवृत्तस्वरूप है। बीचमें आये बिना नहीं रहता। भावकी परिणति है। शुभभावका परिणमन मेरा स्वभाव नहीं है, वह तो आकुलतारूप है।
मुमुक्षुः- ...
समाधानः- वह कोई कहनेकी बात है? आत्मा अनुपम है, उसका आनन्द अनुपम है, उसका स्वभाव अनुपम है। अनन्त गुणोंसे भरा आत्मा है। अनन्त गुणकी जो निर्मल पर्याय प्रगट हो, वह अनुपम है उसका आनन्द। वह कोई वाणी (द्वारा कहा नहीं जाता)। उसे कोई उपमा लागू नहीं पडती। वह कोई अनुपम है। विकल्प टूटकर जो स्वानुभूतिका आनन्द (आता है) वह अनुपम है। जगतमें कोई उपमा नहीं है। किसके साथ मिलान करना?
मुमुक्षुः- बहिनश्रीको लिपटकर रहेंगे उसका भी बेडा पार है। तत्त्व भले कम समझे।
समाधानः- गुरुदेवके चरण मिले वह सब भाग्यशाली है। पंचमकालमें गुरुदेवके चरण सबको लंबे समय तक मिले। ...
समाधानः- ... पूरा मार्ग प्रवर्तता है। कुन्दकुन्द आम्नाय, जहाँ देखो वहाँ कुन्दकुन्द आम्नाय। गुरुदेवने तो कुन्दकुन्दाचार्यके रहस्य खोले हैं। शास्त्रके रहस्य खोले हैं।
मुमुक्षुः- कुन्दकुन्द भगवानकी कुछ बात करीये तो हम सुने।
समाधानः- कुन्दकुन्द भगवानकी क्या बात! उपकार किया इस पंचम कालमें। आचार्य, कुन्दकुन्दाचार्यकी पहचान गुरुदेवने करवायी। गुरुदेवने शास्त्रके सब रहस्य खोले। कुन्दकुन्दाचार्यने शास्त्रमें सब भर दिया। महाविदेह क्षेत्रमें भगवानके पास जाकर आचार्यदेव सब लाये। शास्त्रमें सब भर दिया और गुरुदेवने सब रहस्य खोले हैं। गुरुदेवने तो सब शास्त्रको सूलझा दिये। मुक्तिका मार्ग बता दिया है। कौई जानता नहीं था, मुक्तिका मार्ग क्या है? "आत्मा' शब्द बोलना गुरुदेवने सिखाया।
आत्मा जाननेवाला है, ज्ञायक है, उसे पहिचानो। आत्मा सबसे भिन्न है। यह शरीर, विभावस्वभाव अपना नहीं है। उससे आत्मा भिन्न है। ज्ञान-दर्शनसे आत्मा परिपूर्ण है। आचार्यदेव कहते हैं न,
कुछ अन्य वो मेरा तनिक परमाणुमात्र नहीं अरे! ।।३८।।