Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-४)

१८४

शुद्धतासे भरा मैं अरूपी आत्मा, ये पुदगलका जो रूप है, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श आत्मामें नहीं है। आत्मा उससे अत्यन्त भिन्न है, ऐसे आत्माको पहिचानना चाहिये। ज्ञान-दर्शनसे भरा ज्ञायकतत्त्व पूर्ण, पूरा सम्पूर्ण चैतन्यतत्त्व है उसे पहिचानना। उसमें अपूर्ण दिखती है, विभावके कारण अपूर्णता दिखती है। बाकी परिपूर्ण पूर्ण स्वभाव आत्मा है। एक परमाणुके साथ उसे सम्बन्ध नहीं है। वह स्वयं स्वयंमें ही अनन्त संपदासे भरा है। सब अनन्त प्रताप संपदा आत्मामें भरी है। वह संपदा कैसे प्रगट हो, उसकी रुचि रखने जैसा है। वह कैसे प्रगट हो? उसका अभ्यास, उसकी आदत, उसका विचार, उसका वांचन सब करना, उसकी महिमा। विभावसे रुचि छूटकर आत्माकी ओर रुचि जाये वह करना है। गुरुदेवने वह बताया है। आत्मतत्त्व कोई अलौकिक है।

आचायाने तो पूरा मार्ग शास्त्रमें बहुत भर दिया है। आत्मा कोई अलौकिक अनुपम वस्तु है। चैतन्यरस,.. आचार्यदेव कहते हैं, जैसे क्षाररससे भरी नमककी डली क्षाररसे भरी है, शक्करकी डली शक्करके रससे भरी है। ऐसे आत्मा पूरा चैतन्यतासे, ज्ञायकतासे, आनन्दतासे भरा है। उसे पहिचानना। सबसे न्यारा चैतन्यदेव विराजता है। अपना देव अपने पास है, उसे पहिचान ले। देव-गुरु-शास्त्रको हृदयमें रखकर और वे जो कहते हैं, उनके सान्निध्यसे, उनकी महिमासे आत्माको लक्ष्यमें रखकर उसे प्रगट करना। उसीका अभ्यास, उसीका चिन्तवन आदि सब करने जैसा है।

मुमुक्षुः- विचार करने पर अन्दरमें आप जो भी कहते हो वह सब बात बराबर सत्य है। लेकिन अन्दर जाने पर गुरुदेवके प्रति और आपके प्रति भक्ति उछल जाती है, उसका क्या करना? अन्दर जा नहीं सकते। वही भक्ति आ जाती है कि आहा..! ये वस्तु! ये महिमा आपने बतायी!

समाधानः- जबतक अन्दर जा नहीं सके तब तक भावना आये। शुभभावना तो अंतरमें आती है। परन्तु अंतरमें आत्माको पहिचाननेका ध्येय रखना कि आत्मा कैसे पहिचानमें आये? आत्माकी रुचि कैसे प्रगट हो? वह करने जैसा है। शास्त्रमें आता है, "तत्प्रति प्रीतिचित्तेन येन वार्तापि हि श्रुता'। वह वार्ता भी अपूर्व चित्तसे सुनता है तो भावि निर्वाण भाजन। तो भविष्यमें निर्वाणका भाजन हो। परन्तु अपूर्व रीतसे सुनता है तो। परन्तु अपूर्वता अंतरमेंसे आनी चाहिये। आत्मा अपूर्व है, उसकी रुचि जागृत होनी चाहिये। वह न हो तब तक देव-गुरु-शास्त्रकी महिमा अंतरमें आये बिना नहीं रहती। परन्तु अंतर आत्माको पहिचाननेका प्रयत्नका ध्येय रखना चाहिये।

प्रशममूर्ति भगवती मातनो जय हो! माताजीनी अमृत वाणीनो जय हो!