Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi). Track: 164.

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ट्रेक-१६४ (audio) (View topics)

मुमुक्षुः- .. अनुभूति करनेके लिये बहुत पुरुषार्थ भी करते हैं, लेकिन उसमें ऐसा कैसा दोष हो जाता है कि जिस कारणसे प्राप्त नहीं होता है। गहराई नहीं आती। कौन-सा दोष है?

समाधानः- पुरुषार्थकी क्षति रह जाती है। अंतरमें अभ्यास-एकत्वबुद्धि रह जाती है। पर-ओरकी रुचि (रहती है)। अंतरकी रुचि जितनी प्रगट होनी चाहिये, उतनी होती नहीं। कारण कम आता है, इसलिये कार्य नहीं होता है। महिमा आये, सब आये लेकिन अन्दर पुरुषार्थकी क्षति रह जाती है। भेदज्ञान करनेका जो प्रयत्न चाहिये, चैतन्यको पहिचाननेका वह नहीं हो रहा है। बारंबार उसे अभ्यास करनेकी आवश्यकता है।

छाछको बिलोते-बिलोते मक्खन बाहर आता है। वैसे बारंबार-बारंबार उसका अभ्यास करता रहे। आत्मा जाननेवाला ज्ञायक है। स्वयं ज्ञायक है। परन्तु पर-ओर दृष्टि है इसलिये उसे कर्ताबुद्धि हो गयी है, मानों मैं परका कर सकता हूँ। परन्तु स्वयं अपने स्वभावका कर सकता है, बाहरका कुछ नहीं कर सकता। वह सब तो उदयाधीन होता है। परन्तु उसके पुरुषार्थकी मन्दताके कारण बाह्य दृष्टि है। अंतर दृष्टि करे तो अंतरमेंसे प्रगट हो। ज्ञान, दर्शन आदि सब अंतरमेंसे ही आता है। अंतरमें यथार्थ दृष्टि करनेके लिये, शाश्वत चैतन्य पर दृष्टि करने हेतु, अंतरके भेद परसे भी दृष्टि उठा लेनी है। ज्ञान सब करे, परन्तु एक चैतन्य पर दृष्टि करनी। उस दृष्टिको उसमें स्थिर करना। वह करनेका है। तो उसे ज्ञायकका ज्ञायकरूप परिणमन हो तो विकल्प टूटे, तो स्वानुभूति हो। वह न हो तबतक उसकी रुचि, उसका अभ्यास बारंबार करते रहना।

आचार्यदेव कहते हैं न, तीव्र अभ्यास करे तो छः महिनेमें प्राप्त होता है। परन्तु उसका वह अभ्यास कितना उग्र होता है। परन्तु वह न हो तब तक उसका बारंबार पुरुषार्थ करता ही रहे। स्वयं अपनेको भूल गया है। अपने पास ही है। चैतन्य अनादिअनन्त शाश्वत है। पारिणामिकभावस्वरूप अनादिअनन्त है। उसे पहिचान लेना।

मुमुक्षुः- ... मूल अज्ञानीको वह प्राप्त नहीं होता है।

समाधानः- बालगोपालको लक्ष्यमें चेतन चेतनरूप ही अनुभवमें आ रहा है, परन्तु वह लक्ष्यमें लेता नहीं। चेतन जडरूप अनुभवमें नहीं आता, चेतनरूप अनुभवमें आता