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जाय तो निर्विकल्प उपयोग हो जाय। स्वानुभूति हो जाय, विकल्प छूट जाय तो। लेकिन विकल्प टूटनेसे स्वभावको ग्रहण करके एकदम जोरदार ज्ञायककी ज्ञाताधारा उग्र हो तो विकल्प छूट जाय।
मुमुक्षुः- जैसा-जैसा निमित्त मिलता है, वैसा-वैसा उपयोग अन्दर ... उस प्रकारका परिणमन हो तो..
समाधानः- जैसा-जैसा निमित्त मिले ऐसा नहीं, स्वयं स्वभावको ग्रहण करे तो स्वभावकी ओर ढलता है। निमित्त मिले बाहरसे... बाहरसे निमित्त मिले... यथार्थ कोई सत्संग मिले, गुरु मिले तो अपना स्वभाव ग्रहण करे। प्रयत्न स्वयंको करना पडता है।
मुमुक्षुः- कार्य हम करे, निमित्तका आरोप आता है।
समाधानः- कार्य हो। गुरुदेवने उपकार किया, गुरुदेवने सब समझाया। बहुत जीवोंको गुरुदेवने तैयार किये, ऐसा कहनेमें आये। गुरुदेवका ही उपकार है। सबकी रुचि बाहर क्रियाको मानते थे। गुरुदेवने आत्माकी ओर दृष्टि करवायी। सब गुरुदेवने किया है। परन्तु रुचि अपनी।
मुमुक्षुः- पुरुषार्थ तो अपने करना है।
समाधानः- पुरुषार्थ अपनेको करना पडता है।
मुमुक्षुः- गुरुदेवने तो पंचम कालको चतुर्थ काल बना दिया।
समाधानः- हाँ, चतुर्थ काल बना दिया।
मुमुक्षुः- अभी तो अपनेको करनेका है। लाया, खाना रखा, हमको मुँहमें भी दिया, लेकिन खानेका तो हमको करना है।
समाधानः- हाँ, खानेका प्रयत्न तो करना पडता है। तैयार करके सब दे दिया। स्पष्ट कर-करके बता दिया। कहीं कमी, भूल न रहे ऐसा स्पष्ट करके सूक्ष्म (रूपसे समझाया है)। द्रव्य-गुण-पर्याय, सबको स्पष्ट करके बता दिया है। सब जीव कहाँ क्रियामें पडे थे। सबको ... यथार्थ ज्ञान करके, यथार्थ स्वरूप बता दिया। आत्माका स्वरूप बता दिया।
मुमुक्षुः- गुरुदेवका तो विरह हो गया, अभी आपका ही.. आपको देखकर वह विरह भूल जाते हैं। अभी तो आपका ही सहारा है।
समाधानः- गुरुदेवने तो बहुत दिया सबको। अपूर्व मार्ग। गुरुदेवके सब दास हैं।
मुमुक्षुः- गुरुदेवके दास हैं, लेकिन... अभी तो जन्मदाता तो आप हैं। बच्चा रोकरके आता है तो माँके पास एकदम चीपक जाता है। उसको डाँटते भी है तो भी माताके पास जाता है। उसी तरहसे भवसे त्रस्त होकर, दुःखी होकरके ...आता है। एक इधरमें शान्ति मिलती है। बस, और तो कोई... ऐसा है नहीं। महाराज साहबका