Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-४)

१९८ साधना स्थान है, एक-एक कण-कणमेंसे होता है।

समाधानः- साधनाकी स्फुरणा होती है।

मुमुक्षुः- कोई समेदशीखरसे...

समाधानः- गुरुदेवने साधना की।

मुमुक्षुः- साधना की और आप लोगने उतना उसका लाभ लिया कि अभी भी बढता है, अभी भी बढता है।

समाधानः- सहज पुरुषार्थ उठे, और उसमें पुरुषार्थसे करना पडता है। साधर्मीका संग आदि सब गुरुदेवका प्रताप है। साधर्मी सब यहाँ बसे हैं। भगवान आत्मा है। भगवान है, देख! तेरा भगवान!

प्रशममूर्ति भगवती मातनो जय हो! माताजीनी अमृत वाणीनो जय हो!