Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi). Track: 166.

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ट्रेक-१६६ (audio) (View topics)

समाधानः- ... अन्दर आत्माको पहिचाने, आत्माकी ओर जाय, आत्माकी रुचि करे, आत्माकी महिमा (करे)। सच्ची समझ करे कि मैं कौन हूँ? ऐसी उसे अंतरसे लगन लगनी चाहिये। कहीं चैन न पडे, विभावमें कहीं चैन न पडे, अंतर दृष्टि होनी चाहिये। फिर उसे बाहरकी रुचि तो सहज ही ऊतर जाती है। उसे बाहरका कोई रस नहीं रहता। अंतरमेंसे छूट जाय, इसलिये बाहर एकदम तीव्रतासे कहीं तन्मय नहीं होता। वह तो निरस हो जाता है। बाहरकी अमुक क्रियाएँ होनी चाहिये ऐसा नहीं होता। निरस हो जाता है। सहज-सहज उसे ऐसी विरक्ति आ जाती है। उसे अन्दरसे रस ऊतर जाता है। फिर उसे विचार, वांचन, स्वाध्याय आता है। अंतर आत्माको कैसे पहिचानूँ, उसकी सच्ची समझ, उसके विचार, वांचन होता है। अन्दर खोज (चलती है कि) आत्मा कैसे पहचानमें आये? आत्मा क्या है? ये विभाव क्या है? उसका लक्षण पहिचाननेके लिये सब प्रयत्न चलता है।

उसके लिये इतनी क्रिया होनी चाहिये या इतना होना ही चाहिये, ऐसा नियम नहीं होता। उसे रस नहीं आता, इसलिये सहज ही छूट जाता है। बाहर जो तीव्र रागके प्रसंग और सब क्रियाएँ छूट जाती है, परन्तु उसका नियम नहीं होता कि इतनी क्रिया होनी ही चाहिये, ऐसा नियम नहीं है।

मुमुक्षुः- द्रव्य, भावका कारण बनता है?

समाधानः- द्रव्य भावका कारण... भाव जहाँ यथार्थ होते हैं, वहाँ उसके योग्य ऐसा होता है। द्रव्य लाभ करता है ऐसा नहीं है, भाव उसका यथार्थ हो उसे ऐसा निमित्त बनता है। जहाँ सच्ची रुचि जागृत हो, वहाँ सच्चे देव-गुरु-शास्त्रको वह ग्रहण करता है। सच्ची रुचि जागृत होती है इसलिये उसे अमुक जातके कषाय मन्द हो जाते हैं। उसके कषाय तीव्र नहीं होते। अंतरमें जाय इसलिये उसे कषायका रस कम हो जाता है। अमुक होना चाहिये ऐसा नहीं, लेकिन उसे कम हो ही जाता है।

मुमुक्षुः- स्वाभाविक है।

समाधानः- स्वाभाविक हो जाता है।

मुमुक्षुः- चटपटी लगे उसे ..