२२० तेरे द्रव्यमें भरी है, उसमेंसे शुद्धपर्याय प्रगट होती है।
.. प्रमत्त-अप्रमत्त दशामें ज्ञायक सो ज्ञायक है। छठवें-सातवें गुणस्थानमें झुलते हैं। अंतरमें स्वानुभूति आनन्दमें लीन होते हैं, बाहर आते हैं। उस दशामें झुलते-झुलते कहते हैं, ज्ञायक तो ज्ञायक है। दोनों अवस्थामें ज्ञायक वह ज्ञायक ही है।
मुमुक्षुः- ज्ञायक भिन्न रह गया? समाधानः- अवस्था भिन्न, अवस्थाका स्वरूप अलग और ज्ञायक द्रव्यका स्वरूप अलग है, ऐसा बताते हैं। पर्याय-ओर लक्ष्य.... पर्याय अपनेमें होती है। परन्तु द्रव्यदृष्टिसे पर्याय अपनी नहीं है, ऐसा द्रव्यदृष्टिसे कहते हैं। अपनी नहीं है इसका मतलब जडमें होती है, ऐसा नहीं है। वह अनादिअनन्त शाश्वत द्रव्य है। पर्याय तो क्षणिक है। ऐसा कहते हैं। होती तो है चैतन्यकी पर्याय, जडकी नहीं होती।