Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-४)

२२२ है। अनादिअनन्त स्वरूप है वह नहीं। यह तो प्रगट परिणतिरूप स्वरूप, अनुभूतिरूप स्वरूप है। अनादिअनन्त स्वरूप है वह तो है। लेकिन ये तो अनुभूतिरूप स्वरूप मुनिओंको प्रगट हुआ है। ज्ञान-दर्शन-चारित्र रत्नत्रयकी एकतारूप परिणति प्रगट हुयी है। अनुभूतिरूप। विशेष प्रचुर स्वसंवेदन, अपना वेदन प्रगट हुआ है। स्वरूप यानी उसका वेदन। अनादिअनन्त स्वरूप है ऐसे नहीं। उसकी वेदनरूप परिणति है, अप्रमत्त दशा यानी। रत्नत्रयकी एकता विशेष प्रगट हुई है।

मुमुक्षुः- जैसे चारित्रगुणकी पर्यायमें साधक दशामें दो धारा होती है, वैसे आनन्द गुणकी प्रति समय दो धारा होती है या नहीं?

समाधानः- आनन्दगुणकी धारामें दो धारा, ऐसा नहीं होता। आनन्द तो जो स्वानुभूतिके वक्त प्रगट होता है, वही आनन्द है। बाकी उसे हमेशा शान्ति-समाधिका वेदन होता है।

मुमुक्षुः- छठवें गुणस्थानमें सुखगुणकी पर्याय संपूर्ण दुःखरूप परिणमती है?

समाधानः- छठवें गुणस्थानमें चारित्रकी जो पर्याय है, वह चारित्रकी पर्याय अमुक रूपसे परिणमती है। सुखरूप परिणमती है, दुःखरूप नहीं परिणमती। चारित्र कहीं चला नहीं जाता, सविकल्प दशामें। मुनिओंको चारित्र है।

मुमुक्षुः- और सुखगुणकी पर्याय?

समाधानः- सुखगुणकी पर्याय है। है परन्तु जो स्वानुभूतिका आनन्द है, उस जातकी यह पर्याय नहीं है। स्वानुभूतिका आनन्द है उस जातकी पर्यायकी नहीं है। चारित्र दशा तो है। स्वानुभूतिमें प्रगट होती है। सविकल्प दशामें सुखरूप तो परिणमता है। सुखक वेदन तो होता है। सम्यग्दृष्टिको भी सुखका वेदन होता है। और मुनिओंको तो चारित्र है इसलिये विशेष सुखका वेदन सविकल्प दशामें होता है। सुखकी पर्याय, आनन्दकी पर्याय उसे कहते हैं, बाकी वह आनन्द अलग और यह सुख दोनों अलग वस्तु है। सुखकी पर्याय कहते हैं, बाकी दोनों अलग है। आनन्दगुण और सुखगुण, सब एक अपेक्षासे कहते हैं, बाकी आनन्दगुण और सुखगुण दोनों भिन्न-भिन्न हैं।

समाधानः- ... उसमें अनन्त गुण हैं। उसमें उस गुणको पर्याय कहते हैं और उसी गुणको गुण कहते हैं। ऐसा आता है। ज्ञान और दर्शन दो गुण कहते हैं। चेतनाकी दो पर्याय कोई जगह कहनेमें आता है। ऐसा भी आता है। एक चेतनागुण। उसमें ज्ञान और दर्शन दो। दोनोंको पर्याय कहते हैं, लेकिन दो गुण हैं। दो गुण भी कहनेमें भी आये, दोनों गुण जोरदार है। असाधारण गुण है। समुच्चयरूपसे उसे चेतनागुण कह देते हैं। वैसे चारित्र, सुख और आनन्द। आनन्द गुण भी कहते हैं और आनन्दको पर्याय भी कहते हैं। सब कह सकते हैं।

मुमुक्षुः- ... सत्पुरुषके चरणकमलकी विनयोपासनाके बिना प्राप्त नहीं कर सकता।