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यह निर्ग्रर्र्न्थ भगवानका सर्वोत्कृष्ट वचनामृत है।
समाधानः- हिन्दी है?
मुमुक्षुः- जी हाँ, आपको गुजराती (कहता हूँ)। परमात्माका ध्यान .. परन्तु आत्मा वह ध्यानको सत्पुरुषके चरणकमलकी विनयोपासना बिना प्राप्त नहीं कर सकता। यह निर्ग्रर्र्न्थ भगवानका सर्वोत्कृष्ट वचन है।
समाधानः- परमात्माका ध्यान करनेसे परमात्मा हुआ जाता है। परमात्मा कौन है? परमात्माका स्वरूप क्या है? परमात्माका ध्यान करने परमात्मा हुआ जाता है। परमात्मा, द्रव्य स्वयं परमात्मा है। उसका ध्यान कैसे करना? उसका क्या स्वरूप है? वह बताये कौन? सत्पुरुषकी चरण-उपासनाके बिना वह हो सकता नहीं। वह स्वरूप कौन बताये? परमात्मा किसे कहते हैं? परमात्माका स्वरूप क्या है? उसका ध्यान कैसे किया जाय? वह साधकदशा, साध्य, वह सब सत्पुरुषकी चरण-उपासना बिना हो सकता नहीं।
वह मार्ग सत्पुरुष बताते हैं। अनादिका अनजाना मार्ग है। वह स्वयं अपनेआप अपनी कल्पनासे.. परमात्मा किसे कहनेमें आता है, वह समझे बिना ध्यान करे तो श्रीमदजी ही कहते हैं, ध्यान तरंगरूप हो जाता है। उस ध्यानमें अनेक जातके विकल्प.. विकल्प (चलते हैं)। विकल्प मन्द करे लेकिन जो यथार्थ चैतन्यका अस्तित्व है, उसे ग्रहण न करे तो ध्यान हो सकता नहीं। एक चैतन्यको लक्ष्यमें लेकर उसमें उपयोगको स्थिर करे तो ध्यान जमता है, नहीं तो ध्यान जमता नहीं। सत्पुरुष जो बताते हैं कि तू स्वयं ही परमात्मा है। तेरा द्रव्य स्वयं परमात्मास्वरूप ही है। तू ज्ञायक स्वयं परमात्मा है। परमात्माका स्वरूप बताये, उस पर दृष्टि स्थापित कर, उसमें तेरी लीनता कर तो यथार्थ ... वह मार्ग सत्पुरुष दर्शाते हैं।
सत्पुरुषकी उपासना बिना, सत्पुरुष जो बताते हैं उस मार्गको ग्रहण किये बिना ध्यान हो नहीं सकता। अपनी कल्पनासे ध्यान नहीं हो सकता। ध्यान आत्माको पहिचाने बिना (होता नहीं)। उस आत्माकी पहिचान कौन करवाये? सत्पुरुष। जिन्होंने मार्गको जाना है, जिसने मार्गको साधा है, ऐसे सत्पुरुष उस मार्गको दर्शाते हैं। इसलिये सत्पुरुष जो कहते हैं उसे ग्रहण करना। वे क्या आशय कहना चाहते हैं? परमात्मा किसे कहते हैं, यह सत्पुरुष बताते हैं।
नहीं तो जीव तो अनादि कालसे परमात्मा यानी.. जो परमात्मा है वह चैतन्यस्वरूप परमात्मा है, यह समझता नहीं। परन्तु दूसरे परमात्माको परमात्मा समझता है। वह परमात्मा जिसने पूर्ण स्वरूप प्राप्त किया वह परमात्मा बराबर। लेकिन वह परमात्मा भी ऐसा ही कहते हैं कि तू स्वयं परमात्मा है, उसका ध्यान कर। स्वयं परमात्मस्वरूप है उसका