२२४ ध्यान करनेसे परमात्मा हुआ जाता है। वह मार्ग सत्पुरुष बताते हैं।
सत्पुरुषकी विनय उपासना। जो सत्पुरुष कहे उसे ग्रहण करे और सत्पुरुषको विनयसे वे जो मार्ग बताते हैं, उसका आशय ग्रहण करे, उसे विनयसे सुने, श्रवण करके अन्दर ग्रहण करे तो प्राप्त होता है। स्व मति कल्पनासे प्राप्त नहीं होता। उनका विनय, उनकी भक्ति, हृदयमें बहुमान हो तो वह प्रगट होता है। स्व मति कल्पनासे अर्थ करे कि इसे कहते हैं या इसे परमात्मा कहते हैं, ऐसे वह प्राप्त नहीं होता। सत्पुरुषका आशय बराबर ग्रहण करे। विनयसे, भक्तिसे कि वे क्या कहना चाहते हैं? कोई अपूर्व मार्ग गुरु बता रहे हैं। गुरुने जो अपूर्वता बतायी, उस अपूर्वताको स्वयं बराबर विनयसे समझे तो प्राप्त होता है।
स्वयं ध्यान करने जाय तो ध्यान जमता भी नहीं है। परमात्मा किसे कहते हैं, यह यथार्थ ग्रहण किये बिना ध्यान (होता नहीं)। निज अस्तित्व ग्रहण किये बिना ध्यान जम नहीं सकता। ध्यान तरंगरूप हो पडता है। ध्यान अनादि कालमें किया, बहुत बार ध्यान किया, विकल्प मन्द हुए, ध्यानमें कुछ एकाग्रता हुयी परन्तु आत्मा ग्रहण नहीं हुआ, तो ध्यान तरंगरूप हो पडा। कुछ लाभ नहीं हुआ। सत्पुरुषके विनयसे उन्होंने जो कहा वह ग्रहण करनेसे परमात्मा पहिचाने जाते हैं, परमात्माका ध्यान होता है। सब सत्पुरुषके चरणमें विनय और भक्तिसे उनके वचनोंको ग्रहण करनेसे होता है।
मुमुक्षुः- भक्ति कैसी?
समाधानः- भक्ति तो स्वयं महिमा करे। बाहरसे भक्ति करे ऐसा अर्थ नहीं है। अंतरमें बहुमान आना चाहिये। उनके वचन पर सर्व प्रकारसे बहुमान आना चाहिये। अर्पणता होनी चाहिये। वे कहते हैं बराबर है, उन्होंने जो मार्ग कहा है वह बराबर है। इस तरह स्वयं स्वयंसे नक्की करके बहुमान आना चाहिये। स्वयं विचार करके नक्की करे कि ये सत्पुरुष हैं और कोई अपूर्व मार्ग बता रहे हैं। फिर जो भी कहें वह बराबर है। ऐसे स्वयं अंतरमेंसे उस जातका बहुमान, उस तरह हृदयमें भक्ति आनी चाहिये।
मुमुक्षुः- दूसरे कोई ज्ञानीके प्रति इधर-उधरके विकल्प आते हो तो उसे ज्ञानीका बहुमान या भक्ति अंतरमें नहीं है।
समाधानः- नहीं, इधर-उधरके विकल्प आये तो वह भक्ति नहीं है। जो गुरु कहते हैं वह बराबर ही है। फिर उसका हृदय अर्पण हो जाता है। उनकी भक्ति और महिमासे.. जो गुरु साधक दशा साध रहे हैं उसमेंसे निकली हुयी वाणी और साधकताके जो-जो कार्य हों वह सब उसे बहुमानरूप ही ग्रहण करता है, अन्यथा ग्रहण नहीं करता।
मुमुक्षुः- उसे उसमें शंका न पडे.. उस जातकी तैयारी..