Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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रुचि कभी मन्द पडती है, कभी तीव्र होती है, कभी मन्द-तीव्र हुआ करती है। इसलिये रुचिकी उग्रता करनी।

मुमुक्षुः- मेरा सबकुछ मुझमें है, उसमें कमी होनेसे ऐसा होता है? मेरा सबकुछ मुझमें है अथवा मेरा सुख और मेरा ज्ञान सब मुझमें है।

समाधानः- मुझमें है, उसकी रुचि, उसकी महिमा। बाहरमें एकत्व होकर बाहरकी रुचि बढ जाये, बाहरमें संतुष्ट हो जाये, ऐसा हो जाये तो रुचिकी मन्दता हो जाये। बाहरमें उसे कहीं तृप्ति नहीं हो, बाहरमें कहीं भी उसे संतुष्टपना नहीं हो और अंतरमें मुझे प्राप्त हो तो ही मुझे संतोष और तृप्ति हो। अन्दरमें ऐसी रुचि और ऐसा हुआ करे। रुचिकी उग्रता होती रहे। बाहरमें संतुष्ट नहीं हो। रुचिकी मन्दता-तीव्रता ...

जिसे यथार्थ भेदज्ञान होकर ज्ञायककी प्रतीत दृढ हो गयी उसे तो एकरूप हो गया, परन्तु जो अभी जिज्ञासामें है, बाहरमें संतुष्ट हो जाता है, बाहरमें तृप्त हो जाये, बाहरमें थोडा करे तो तृप्ति हो जाये और अंतरमें कुछ मन्दता हो जाये तो रुचिको तीव्र करे। इस अर्थमें है।

मुमुक्षुः- समझ हो कि श्रद्धान हो कि मैं अखण्ड स्वरूपसे ध्रुव तत्त्व रूप हूँ, परन्तु जबतक उसे पूर्णरूपसे नहीं प्राप्त करे, पूर्ण आनन्दकी अनुभूति नहीं हो, उस ओरकी रुचि बढानी। श्रद्धान हो उसका पहला भाव कि यह मैं। उसे कैसे प्राप्त करना? मुझे मेरे गुणोंका, गुणधमाका साहजिक रूपसे कैसे अनुभव हो, यही समझना, उसीका प्रयास, उसकी ही रुचि।

समाधानः- उसका ही बारंबार अभ्यास, उसका ही प्रयास करना कि मैं यह ज्ञायक हूँ। उसका यथार्थ ज्ञानस्वभाव पहचानकर, ज्ञानमात्र नहीं परन्तु पूर्ण ज्ञायकद्रव्य हूँ, उसे पहचानकर प्रतीत करे। बारंबार, यही मैं हूँ, ऐसी बारंबार दृढता करके, यही मैं हूँ, दूसरा नहीं, ऐसे बारंबार (अभ्यास करे)। शरीरके साथ, विकल्पके साथ एकत्वबुद्धि हो जाये, परन्तु मैं यह नहीं हूँ, मैं ज्ञायक ही हूँ। स्वयंको भूल जाये और दूसरेमें एकत्व हो जाये (तो) बारंबार, मैं यह ज्ञायक ही हूँ, इसप्रकार बारंबार दृढता करे। ये जो अनन्त गुणोंसे भरपूर है वह मुझे कैसे प्राप्त हो? इसप्रकार बारंबार उसकी रुचि बढाता जाये। उसकी श्रद्धा दृढ करता जाये। श्रद्धा हो उसे ऐसा लगे कि श्रद्धा दृढ है। बाहरमें संतुष्ट हो जाये तो उसकी रुचिकी मन्दता हो जाये।

मुमुक्षुः- माताजी! उसे रुचिकी मन्दता कहना या रुचिका अभाव कहना?

समाधानः- अभाव नहीं, परन्तु उसे अन्दर थोडी तो खटक होती है। वह स्वयं ही अपना जान सके कि बाहरमें कितना संतुष्ट होता है और कितना अन्दर (प्रयास करता है)? स्वयं अपना जान सकता है। उतना समय हो गया, कुछ होता नहीं, ऐसा