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परावर्तन, ऐसे अनन्त परावर्तन किये। जिसका कोई माप नहीं है, उतने जन्म-मरण किये। उसमें इस मनुष्य भवमें पंचमकालमें गुरुदेव मिले। उन्होंने धर्म बताया कि आत्मा भिन्न है। तू ज्ञायक है, तू शाश्वत है, तेरा आनन्द स्वभाव है उसे ग्रहण कर।
रागके कारण दुःख होता है, लेकिन विचारोंको बदलकर आत्माका शरण ग्रहण करने जैसा है। बडे देवलोकके देवोंके आयुष्य भी पूर्ण हो जाते हैं। सागरोपमका आयुष्य हो तो भी पूरा हो जाता है, तो इस मनुष्यभवमें और इस पंचमकालमें तो आयुष्य पूरा होनेमें देर नहीं लगती। एक क्षणमें फेरफार हो जाते हैं।
मुमुक्षुः- ऐसे महान पुण्य कि ऐसे संतोंका योग हुआ। सब पुण्यवान कि ऐसा धर्म..
समाधानः- ऐसा धर्म और ऐसे गुरु मिलना महा मुश्किल है। शान्ति रखनी। ऐसे प्रसंगोंमें शान्ति रखने जैसा है। शास्त्रमें आता है न कि अनन्त माताओंको स्वयंने रुलाया है और अनन्त माताओंने स्वयंको रुलाया है। स्वयंको रुलाकर अनन्त (जीव) चले गये। ऐसे अनन्त जन्म-मरण जीवने किये हैं।
जगतमें एक सम्यग्दर्शन दुर्लभ है कि जिससे भवका अभाव होता है। एक जिनवरस्वामी मिलना दुर्लभ है। मिले तो स्वयंने स्वीकार नहीं किया-उनको पहिचाना नहीं। एक जिनवरस्वामी और एक सम्यग्दर्शन, ये दो वस्तुएँ प्राप्त होना अत्यंत दुर्लभ है। बाकी अनन्त कालमें सब प्राप्त हो चूका है। कुछ नहीं मिला ऐसा नहीं है। देवलोकके भव अनन्त, मनुष्यके अनन्त, तिर्यंचके अनन्त, नर्कके अनन्त, जीवने अनन्त-अनन्त भव किये हैं। उसमें एक सम्यग्दर्शन प्राप्त करना महादुर्लभ है। वह सम्यग्दर्शन कैसे प्राप्त वह मार्ग गुरुदेवने बताया है। वह करने जैसा है।
एक जिनवर स्वामी और एक सम्यग्दर्शन (प्राप्त नहीं हुआ)। जिनवर स्वामी मिले। जिनवरको पहिचाने वह स्वयंको पहिचाने, स्वयंको पहिचाने वह जिनवरको पहिचानता है। इसलियेे वह ग्रहण करने जैसा है कि आत्मा कैसे पहचानमें आये? वह वस्तु दुर्लभ है। अन्दर भेदज्ञान और स्वानुभूति कैसे प्राप्त हो, वही ग्रहण करने जैसा है। बारंबार विचारोंको बदलकर शान्ति रखने जैसा है। जितना राग होता है उतना दुःख होता है। परन्तु जीवको पलटने पर ही छूटकारा है। शान्ति रखनी वही एक उपाय है। अन्य कोई उपाय अपने हाथमें नहीं है। एक शान्ति और एक आत्माका धर्म- स्वभाव ग्रहण करना। देव-गुरु-शास्त्रको हृदयमेंं रखकर आत्माको ग्रहण करना, वह करने जैसा है। ज्ञायक आत्माका शरण ग्रहण करने जैसा है।
मुमुक्षुः- विचार किया हो मतलब क्या?
समाधानः- विचार आत्माको ग्रहण करना कि मैं ज्ञायक हूँ। कोई पर पदार्थके