२४० अपना घर नहीं है। यह स्वघर अपना है, यहाँ आओ। आचार्यदेव कहते हैं, यहाँ आओ, यहाँ आओ। पुरुषार्थ करता हुआ विकल्पको तोडकर निर्विकल्पताको प्राप्त करता है। पुरुषार्थ करता है। फिर सदा विज्ञानघन हो जाता है। परिणति भी दोडकर आती है।
मुमुक्षुः- घर पर ऐसा कहते थे कि देह छूटनेका समय आ जाय तो उस वक्त मुझे सावधानी रखनेके लिये क्या करना? ऐसा मन्त्र माताजी..
समाधानः- जाननेवाला है। आनन्द, ज्ञान सब आत्मामें है। उसका जाननेवाला ज्ञायक है।
मुमुक्षुः- परन्तु जब रोग होता है उस वक्त घिर जाना होता है।
समाधानः- पुरुषार्थ करना, बारंबार अभ्यास करना।
मुमुक्षुः- क्या पुरुषार्थ करना?
समाधानः- मैं जाननेवाला ज्ञायक हूँ, आत्मा हूँ। जाननेवाला ज्ञायक आत्मा हूँ। वेदना मेरेमें नहीं है। दोनों वस्तुएँ-तत्त्व भिन्न-भिन्न हैं। पुरुषार्थ करना। मैं जाननेवाला ज्ञायक हूँ, शाश्वत हूँ। आत्माका नाश नहीं होता है, शरीर बदलता है। आत्मा तो अनादिअनन्त शाश्वत है, मैं जाननेवाला ज्ञायक हूँ। गुरुदेवने यह कहा है।
देव-गुरु-शास्त्रका स्मरण करना और ज्ञायकका स्मरण करना। शुभभावमें देव-गुरु- शास्त्र और अंतरमें ज्ञायक। ज्ञायक अदभुत आत्मा अचिंत्य है, अनुपम है। उसकी महिमा करनी, उसे लक्ष्यमें लेना, उसका अभ्यास करना। वेदना भिन्न और ज्ञायक आत्मा भिन्न है। यह एक ही मन्त्र गुरुदेवने कहा है।
जाननेवाला ज्ञायक अनन्त गुणोंसे भरपूर, उसका भेदज्ञान करना। अपनेमें एकत्व है और परसे भिन्न विभक्त है। आँखमें कम दिखाई देता है। आत्मा जाननेवाला, आत्मामें आनन्द, सब आत्मामें है। पुरुषार्थ करना चाहिये, बारंबार उसका अभ्यास करना चाहिये। बारंबार बदल जाय तो बारंबार अभ्यास करना। बारंबार उसे-आत्माको लक्षणसे पहिचानना। उसकी महिमा अनादि कालसे नहीं की है इसलिये बाहर दौडा जाता है। उसमें ही सर्वस्व, सब उसीमें है, ऐसे बारंबार पुरुषार्थ करना। मैं भिन्न हूँ।
... जीवने बहुत जन्म-मरण किये। भवका अभाव होनेका मार्ग गुरुदेवने बताया है। आत्मा भिन्न है-भिन्न है। बारंबार मैं चैतन्य भिन्न हूँ-भिन्न हूँ। ऐसे बारंबार भिन्नताकी भावना करनी। (भवका) अभाव करनेका मार्ग गुरुदेवने बताया है। अभाव करनेका मार्ग बताया है। शुद्धात्मा शुद्धतासे भरा है।
मुमुक्षुः- बार-बार चलायमान हो जाते हैं।
समाधानः- बारंबार पुरुषार्थ करना। शास्त्रमें आता है न?