Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-४)

२४६ सहज झुकती जाती है। लेकिन उसे प्रथम भूमिका विकट है। विभावमेंसे स्वभावमें आना उसे दुर्लभ हो पडा है। स्वभाव प्रगट होनेके बाद स्वभावमेंसे स्वभाव प्रगट होता है। पुरुषार्थ उसी ओर उसका मुडता जाता है।

समाधानः- .. जिसने जन्म धारण किया उसे आयुष्य पूरा होता है और देह ू छूट जाता है। लेकिन ऐसे गुरु मिले, उसका संस्कार लेकर जाय तो वह जीव सफल है। जीवनमें देव-गुरु-शास्त्रकी महिमा और ज्ञायक आत्माको पहिचाननेका अभ्यास करना वही करने जैसा है। बाकी अनन्त जन्म-मरण किये उसमें ऐसा मार्ग बतानेवाले गुरु इस पंचमकालमें मिले।

आत्मा भिन्न है। अंतरमें स्वानुभूति हो, आत्माका आनन्द कोई अलग है, यह सब बतानेवाले गुरु मिले। उसी मार्ग पर चलने जैसा है। सत्य तो यह है। (अनन्त) जन्म-मरण किये, उसमें मनुष्यजन्म कैसे सफल हो? आत्माको अन्दरसे भिन्न करके भेदज्ञान करके उसका अभ्यास करे, वह करने जैसा है। मांजीको तो बहुत वषाका (परिचय है)। .. हो तो सही वक्तमें काम आता है।

मुमुक्षुः- आपकी तबियत?

समाधानः- ठीक है, पहलेसे ठीक है। .. उसमें इस पंचमकालमें गुरुदेव मिले। गुरुदेवने कोई मार्ग बताया। वह मार्ग अंतरमें है। बाहरमें (नहीं है)। अंतरमें मार्ग है। जिसे मोक्ष प्राप्त करना हो तो अंतरमेंसे मिलता है। बाहरसे नहीं मिलता। इसलिये अन्दर जो ज्ञायक स्वभाव है, आत्मा ज्ञायक है उसे पहिचाननेका प्रयत्न करना। उसके लिये विचार, वांचन, शास्त्र अभ्यास, देव-गुरु-शास्त्रकी महिमा वह सब एक आत्माको पहिचाननेके लिये है।

अनन्त कालसे बहुत जन्म-मरण हुए। उसमें जीवने सच्चा धर्म क्या, वह नहीं पहचाना है। यह सच्चा धर्म गुरुदेवने बताया। वह जीवनमें करना है। वह कैसे पहिचानमें आये? उसका अभ्यास बारंबार, बारंबार उसकी रुचि, अभ्यास, विचार, शास्त्र अभ्यास सब करनेका है। अन्दर विकल्प हो वह अपना स्वभाव नहीं है। जैसे सिद्ध भगवान हैं, वैसा आत्माका स्वरूप है।

जैसे सिद्ध भगवान हैं, अकेले चैतन्य आत्मस्वभावमें विराजते हैं, वैसा स्वभाव स्वयंको कैसे प्रगट हो? ऐसी महिमा, ऐसी रुचि अंतरमें करने जैसी है। आत्मा अन्दरसे भिन्न पडकर अपनी निर्विकल्प स्वानुभूतिको कैसे प्राप्त करे, वह प्रगट करने जैसा है। अपना स्वभाव अपनेमें-से प्रगट होता है, बाहरसे कहींसे नहीं आता। अंतरमें-से ही स्वयं ही स्वयंको खोज लेना है और वही जीवनमें करना है। सचमूच तो वह करनेका है।

... अन्दरसे रुचि रखनी है और बाह्य साधन,.. क्षेत्र कितना दूर... ये तो जोरावरनगर