२४८ क्या स्वभाव है? उसको पहिचानना। उसे पहिचानकर उसकी यथार्थ प्रतीत करनी। उसकी यथार्थ श्रद्धा (करनी)। ऐसी श्रद्धा हो कि ब्रह्माण फिरे तो भी उसकी श्रद्धा न फिरे, उतनी दृढ श्रद्धा होनी चाहिये। फिर उसमें लीनता करे तो साक्षात्कार हो। तो विकल्प टूटे और तो उसे निर्विकल्प दशा, साक्षात्कार हो।
अन्दर आत्मामें अपूर्व आनन्द भरा है। आत्मा अनुपम स्वरूप है। परन्तु उसे पहिचाने और उसमें लीनता करे तो हो। यथार्थ ज्ञानके बिना यथार्थ ध्यान हो नहीं सकता। इसलिये पहले यथार्थ ज्ञान करके फिर उसका ध्यान होता है।
मुमुक्षुः- यथार्थ ज्ञान कैसे प्राप्त करना?
समाधानः- यथार्थ ज्ञान, जो महापुरुष, सत्पुरुष कहते हैं वह मार्ग क्या है? मार्ग दर्शाते हैं। सत्पुरुषोंकी वाणी सुननी। उसमें क्या रहस्य भरा है, उसका विचार करना। तो यथार्थ ज्ञान हो। शास्त्रोंमें क्या आता है? गुरुदेव विराजते थे। उनके कोई अपूर्व वाक्य, अपूर्व आत्माका स्वरूप बताते थे। उसका विचार करना। पहले वस्तु क्या है, उसका विचार करना। तत्त्व चिंतवन करना, आत्माकी महिमा करनी। बाहरकी महिमा कम हो जाय और अंतर आत्माकी यदि महिमा आये तो उस ओर जीवका झुकाव होता है। बाहर कहीं-कहीं अटक जाय तो वैसे आत्म साक्षात्कार हो नहीं सकता।
अंतर आत्माकी रुचि लगे, उसीकी लगन लगे, बारंबार उसीका मनन, उसकी लगन, उसका विचार (करे) तो आत्म साक्षात्कार हो। क्षण-क्षणमें यह मेरा स्वरूप नहीं है, मैं तो ज्ञायक हूँ। मैं तो चैतन्य हूँ। ऐसे बारंबार उसकी परिणति होनी चाहिये, बारंबार। जो सत्पुरुष कहते हैं, उसका बारंबार विचार करना।
मुमुक्षुः- क्योंकि हमारी भगवत गीतामें कहा है कि आत्मा ... घात नहीं होता। आत्मा शरीर नहीं है, मन नहीं है, बुद्धि नहीं है। भिन्न-भिन्न नेति.. नेति करके जो समझाया है, ऐसे आत्मके स्वरूप पर्यंत पहुँच सकते हैं?
समाधानः- पहुँच सकता है, आत्माके स्वरूप तक पहुँच सकता है। परन्तु पहले उसका विचार करे, यथार्थ निर्णय करे, बादमें उसमें उसकी यथार्थ एकाग्रता (होती है)।
मुमुक्षुः- वांचनसे निर्णय हो सकता है?
समाधानः- वांचनके साथ विचार करना।
मुमुक्षुः- स्वयं विचार करना?
समाधानः- हाँ, स्वयं विचार करना। जब तक स्वयं यथार्थ समझे नहीं, तब तक सत्पुरुष क्या कहते हैं, उसका वांचन करे। परन्तु विचार स्वयंको करना है। निर्णय स्वयंको करना पडता है। स्वयं यथार्थ निर्णय करना कि स्वभावमेंसे ही स्वभाव प्रगट होता है। जो जिसका स्वभाव है, उसीमेंसे वह प्रगट होता है। उसका जैसा बीज हो