२५८ मैं गुरु मानती हूँ और मुझे उन पर बहुत प्रेम आता है।
समाधानः- हाँ, वे सम्यग्दृष्टि स्वानुभूतिको प्राप्त हुए थे। बचपनसे ही वे वैरागी थे। उनकी विचारशक्ति एकदम तीव्र थी। उनका ज्ञान कैसा था! वे गृहस्थाश्रममें रहते थे फिर भी भिन्न ही रहते थे। स्वानुभूति गृहस्थाश्रममें प्रगट हुयी थी। वे तो भिन्न रहते थे। आत्मरस चखा, हरिरस कहो, हमें कौन पहचान सकेगा? ऐसा सब लिखते हैं। आत्माकी स्वानुभूति उन्हें प्रगट हुयी थी।
मुमुक्षुः- यहाँसे महाविदेह क्षेत्रमें जा सकते हैं?
समाधानः- नहीं जा सकते। महाविदेह क्षेत्र (जानेमें) कितने पर्वत, पहाड बीचमें आते हैं। वर्तमानके जीव जा नहीं सकते।
मुमुक्षुः- इस कालमें नहीं जा सकते।
समाधानः- अभी नहीं। बहुत साल पहले एक आचार्य हुए थे-कुन्दकुन्दाचार्य। जिनके शास्त्र अभी स्वानुभूति प्रगट हो ऐसे उनके शास्त्र हैं। मूल मार्ग बताते हैं। उनके शास्त्र पर गुरुदेवने प्रवचन किये हैं। वे कुन्दकुन्दाचार्य थे वह बहुत साल पहले महाविदेहमें आचार्य गये थे। आचार्यको ध्यानके अन्दर भगवानकी वेदना हुयी कि अरे..! भगवानके दर्शन नहीं है। इसलिये कोई लब्धिसे या कोई देवोंने आकर उन्हें महाविदेह क्षेत्रमें ले गये थे। वहाँ आठ दिन रहे थे। भगवानकी वाणी सुनी, ऐसे कोई महासमर्थ मुनिश्वर हों, वे कुन्दकुन्दाचार्य थे वे जा सके थे। कितने हजार वर्ष पहले। हमने यहाँ सब पढा हुआ है।
समाधानः- .. विभावमें सुख न लगे ... आत्मामें ही सुख लगे। ये विकल्प अर्थात सब विभाव, विकल्प, संकल्प-विकल्प उसमें उसे शान्ति न लगे, उसे दुःख लगे। शान्ति न लगे। ये क्या? ये सब विभाव है वह तो आकुलतारूप और दुःखरूप ही है। दुःख लगे, शान्ति न लगे। शान्ति आत्मामें ही है। ऐसी प्रतीति हो, फिर उसमें उग्रता हो (तो स्वानुभूति होती है)। स्वयंकी रुचि हो इसलिये विभावसे वापस मुड जाता है। यह मुझे दुःख है, दुःख है, ऐसा विकल्प नहीं आये, लेकिन उसमें उसे आकुलता लगे, कहीं शान्ति न लगे। शान्ति आत्मामें है, रुचि आत्माकी ओर जाय। उसमें टिक न सके।
अपनी ओर रुचि जाय इसलिये विकल्प-ओर, विभावकी ओर, सब जातके, उसमें शान्ति तो लगे ही नहीं, अशान्ति लगे। उसका उग्र रूप हो इसलिये उसे ज्यादा लगे, इसलिये आत्माकी ओर ही उसकी परिणति दौडे। आत्माकी ओर दौडे इसलिये विकल्प छूटकर स्वयं स्वरूपमें लीन हो जाय। स्वरूपकी लीनता हो इसलिये विकल्प छूट जाय।
मार्ग तो एक ही है। शुभ परिणाम या कोई विकल्पमें उसे शान्ति या सुख न