२६४ बिनाका ध्यान तो यथार्थ जमता ही नहीं। विकल्प (होने लगे)।
मुमुक्षुः- नींद आ जाती है। ध्यान करने बैठे तो नींद आ जाती है। फिर कोई जगाये तब उठते हैं। सच्ची बात है।
समाधानः- समझ बिनाका ध्यान ऐसा (ही होता है)। स्वयंको पहिचाना नहीं है, स्थिर कहाँ होना? विकल्प कम करने जाय तो शून्यता जैसा हो जाय। शून्यतामें निद्रा जैसा हो जाय। क्योंकि अपना पदार्थ ग्रहण नहीं किया है। पदार्थ जो जागृतस्वरूप आत्मा है उसे ग्रहण करे तो उसमें ध्यान हो न। तो उसमें कुछ सुख दिखे, उसमें कुछ ज्ञान दिखे, उसमें कुछ अपूर्वता दिखे तो उसमें वह स्थिर रहे। कुछ दिखाई न दे और विकल्प करने जाय तो क्या हो? उसे नींद आ जाती है। इसलिये पहले यथार्थ भेदज्ञान करना कि ये मैं भिन्न (हूँ)। पदार्थको जाननेका प्रयत्न करना।
बाहरसे करनेसे कुछ नहीं होता। अंतरसे करनेसे ही होता है। अंतरमेंसे अपनी रुचि पलटनी चाहिये और उसे खोजनेका प्रयत्न करे। उसके लिये शास्त्रमें क्या कहते हैं? गुरु क्या कहते हैं? वह सब बारंबार विचारना। गुरुका आशय क्या है? वह सब विचारना चाहिये।