પૂજ્ય ગુરુદેવશ્રીની ભકિત માતાજીના અવાજમાં 0 Play पूज्य गुरुदेवश्रीनी भकित माताजीना अवाजमां 0 Play
અંતરમાં દિવસ-રાત્ર ખટક લાગવી જોઈએ તે વિષે.... 1:10 Play अंतरमां दिवस-रात्र खटक लागवी जोईए ते विषे.... 1:10 Play
..... આત્માની કોઈ ઝલક નથી.... તેની ઝલક દેખાઈ જાય તો આપોઆપ પ્રયત્ન ચાલુ થઈ જાય (પ્રશ્નનો સાર) 1:50 Play ..... आत्मानी कोई झलक नथी.... तेनी झलक देखाई जाय तो आपोआप प्रयत्न चालु थई जाय (प्रश्ननो सार) 1:50 Play
મહાવિદેહક્ષેત્ર વિષે પ્રશ્ન છે 7:20 Play महाविदेहक्षेत्र विषे प्रश्न छे 7:20 Play
....પુરુષાર્થ કરવા છતાં વૃત્તિ બહુ હેરાન કરે છે તેનો કોઈ રસ્તો બતાવો.... 9:20 Play ....पुरुषार्थ करवा छतां वृत्ति बहु हेरान करे छे तेनो कोई रस्तो बतावो.... 9:20 Play
ઋષભદેવ દાદાને મળી આવ્યા તેનાથી શું મોક્ષ થાય? 12:20 Play ऋषभदेव दादाने मळी आव्या तेनाथी शुं मोक्ष थाय? 12:20 Play
....ગૃહસ્થ જીવનમાં ....કેવી રીતે આત્માની નજીક રહેવું..... તે માટે નિયમો તરીકે તમે કાંઈ કહી શકો? 14:25 Play ....गृहस्थ जीवनमां ....केवी रीते आत्मानी नजीक रहेवुं..... ते माटे नियमो तरीके तमे कांई कही शको? 14:25 Play
તમે ખટક શબ્દ બોલો છો તે ખટક એટલે શું? 15:35 Play तमे खटक शब्द बोलो छो ते खटक एटले शुं? 15:35 Play
તમે તો સત્સંગમાં રહો છો પણ મારે તો પ્રયાસ કરવો પડે છે.....તેના નિયમો હોય તો અમે પણ આત્માની નજીક આવી શકીએ....(પ્રશ્નનો સાંરાંશ) 16:00 Play तमे तो सत्संगमां रहो छो पण मारे तो प्रयास करवो पडे छे.....तेना नियमो होय तो अमे पण आत्मानी नजीक आवी शकीए....(प्रश्ननो सांरांश) 16:00 Play
પોતાની સહજદશા વિષે.... 17:30 Play पोतानी सहजदशा विषे.... 17:30 Play
આપના પુનર્જન્મની વાત કરો જેથી અમને ખરેખરી લગની લાગે.....મહાવિદેહક્ષેત્રના ભગવાન વિષે... 18:00 Play आपना पुनर्जन्मनी वात करो जेथी अमने खरेखरी लगनी लागे.....महाविदेहक्षेत्रना भगवान विषे... 18:00 Play
... गुणमूर्तिना गुणों तणा स्मरणों हृदयमांही रह्या महिमाभर्या गुरुदेवनी महिमा कथन हुँ शुं करुँ? गुणमूर्तिना गुणों तणा स्मरणों हृदयमांही रह्या। ... थया आ स्वर्णगढने धन्य छे, सदगुरुजी आपना ते आपनो पण धन्य छे। ज्यां वास गुरुजी आपना, मन्दिर, मकानो धन्य छे, गुरुजी बिराज्या आप ज्यां ते आसनो पण धन्य छे। चरणसेवा सांपडे ते जीवनने पण धन्य छे, तुज दर्शने पावन बन्या ते लोकने पण धन्य छे। तुज वाणीथी पावन बन्या ते लोकने पण धन्य छे।
समाधानः- ... उसे खटक रहा करे कि ये सब बाहरका तो जूठा ही है। भलेअनुकूल संयोग हो और कोई प्रतिकूल, कोई वैराग्यका प्रसंग बने या कोई अच्छे प्रसंग बने तो भी ये कोई आत्माको सुखरूप नहीं है। ये तो कुछ अलग ही है। अन्दर चैतन्य आत्माकी वस्तु, आत्मा कोई अलग ही है। अन्दर खटक लगनी चाहिये। तो अंतरमेंसे उसे दिन और रात उसीके विचार आते रहे, उसीकी लगन लगे कि इसमें सुख नहीं है, ये सुख नहीं है। सुख आत्मामें ही रहा है। आत्मा कोई अनुपम है, जगतसे भिन्न है, वह आत्मा कैसे प्रगट हो?
मुमुक्षुः- मुझे क्या लगता है कि आत्म साक्षात्कार या आप जो भी कहो, उसमेंऐसी क्या वस्तु है कि जिसके लिये सब प्रवृत्त हो? उसकी कोई झलक न हो और अपने यह कहे कि ये सब असार है, असार है। शास्त्रोंमें या सबने कहा है, उसका मानकर। इसलिये किसी भी प्रकारकी, जो आप कहते हो कि लगन है या यह-वह, एक बार हमें मालूम पडा कि यह हीरा है। तो हमारे हाथमें रहे पत्थर अपनेआप छूट जाय। कोई छोडना नहीं पडे। उसी प्रकार आत्म साक्षात्कार क्या है? उससे क्या मिलता है? वह कैसे? बातें सुनी हैं, कुछ भी अनुभूति न हो तो कैसे मने उसमें प्रवृत्त हो? एक बार यदि उसकी झलक हो जाय तो अपनेआप... उसमें किसीको