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क्योंकि जो सामने है उसकी मजा नहीं ले सकते, उसकी मजा नहीं ले सकते। आत्माकी तो कोई झलक नहीं है। इसलिये हालत दूसरे संसारी मनुष्य है, उससे भी बदतर है। और कुछ ज्यादा ही अकूलाहट होने लगती है।
समाधानः- सच्चे गुरु मिले हो और सच्ची प्रतीति हुयी हो तो उसकी प्रतीति दृढ ही रहती है। सच्चे देव-गुरु-शास्त्र जिसे मिले, अंतरसे सत्य ग्रहण हो तो उसे विश्वास ही रहता है कि इसी रास्तेसे साक्षात्कार होगा, दूसरा कोई रास्ता नहीं है। मेरे पुरुषार्थकी मन्दता है, मैं नहीं कर सकता हूँ। लेकिन उसकी रुचि उसीमें रहती है। इसी मार्ग पर जानेका है, दूसरा कोई मार्ग नहीं है। रुचि बाहरसे मन्द पडकर उसे हूँफ आ जाती है कि यही मार्ग है।
सच्चे गुरु मिले और अंतरसे विश्वास न आये, ऐसा तो बन ही नहीं सकता। इसलिये अभी भी विश्वास नहीं आता है तो स्वयंने पहिचाना नहीं है और सच्चे गुरु भी स्वयंको नहीं मिले हैं या स्वयंने अन्दरसे विश्वास नहीं किया है। स्वयंको विश्वास आना चाहिये। सच्चे गुरु मिले और विश्वास न आये ऐसा बने नहीं। स्वयं परीक्षा करके स्वीकार करे तो उसे भटकना न पडे। निश्चित हो जाय। क्योंकि आत्मामें उतनी शक्ति है निर्णय करनेकी कि, बस, यही मार्ग सत्य है। बुद्धिसे नक्की कर सकता है। गुरु कहे उसे बराबर नक्की कर सकता है।
यहाँ गुरुदेव विराजते थे। उनकी वाणीमें ऐसा धोध बरसता था, ऐसी अपूर्वता था कि सामनेवालेको नक्की हो जाय कि यही मार्ग है। बुद्धिसे विचार करे तो अन्दर निर्णय हो ही जाय। सच्चा मार्ग मिले और नक्की न हो, ऐसा बनता ही नहीं। सच्चे गुरु मिले तो अन्दरसे स्वयंको विश्वास आ जाता है, हूँफ आ जाती है। फिर भटकने जैसा लगे ही नहीं। उसे हूँफ आ जाय। फिर भले पुरुषार्थ मन्द हो, पुरुषार्थ न कर सके, लेकिन उसकी रुचि पूरी पलट जाती है। आत्मा भिन्न है, भले ही मुझे पकडमें नहीं आता, लेकिन मार्ग तो यही सत्य है। भेदज्ञानके मार्ग पर ही जाना है। अंतरमें ही मार्ग है। ऐसा अंतरमेंसे उसे विश्वास आ जाय। सच्चे गुरु मिले और स्वयं नक्की करे तो कहीं भटकना रहता ही नहीं।
मुमुक्षुः- महाविदेह क्षेत्र जहाँ कुन्दकुन्दस्वामी गये थे, उसे ब्रह्माण्डमें कहाँ रखना? वैज्ञानिक दृष्टिकोणसे देखें तो उसकी कहीं तो असर दिखाई दे। महाविदेह क्षेत्र कहाँ है? बराबर न? जिसे अवकाशमें हम जाते हैं तो... जैसे अमेरिका जाते हैं, ओस्स्ट्रेलिया जाते हैं, अवकाशमें हम लोग चन्द्र तक गये हैं।
समाधानः- किस जगह है, ऐसा न? दूर है। यहाँसे जा सके ऐसा नहीं है।
मुमुक्षुः- ब्रह्माण्डमें कहाँ?