२७० है। अंतरमेंसे मोक्ष होता है। गुरुदेवने यहाँ विराजकर इतना स्पष्ट कर दिया है। किसीको कोई शंका न रहे। सब सुननेवालेको इतना संतोष है कि इसी मार्गसे मोक्ष होगा। सब लोग उसीकी रुचि और अभ्यास (करते हैं)। फिर पुरुषार्थ मन्द हो वह एक अलग बात है। बाकी उतना विश्वास और उतना संतोष है कि इसी मार्गसे मोक्ष होगा। सरलाबहिन पीछेसे आयी है तो भी उनको इतना विश्वास बैठता है।
मुमुक्षुः- मैंने सबको वही कहा। गुरुदेवके सिवा अब किसीको सुननेकी मेरी तैयारी नहीं है।
मुमुक्षुः- शहरी जीवनमें ... वह मार्ग दैनिक जीवनमें एकदम व्यस्त रहकर भी कैसे उसके समीप रहना, उसके लिये इतना धर्मलाभ दिया। तो कुछ नियमके तौर पर आप कुछ कह सकते हो कि इतने नियम पालन करना, जिससे निरंतर सान्निध्यमें रह सके। आत्म निरीक्षणकी जो हमारी झँखना है, उसके समीप आ सके।
समाधानः- उसका नियम, स्वयं अंतरमें रुचि बढाये तो हो। वहाँ कोई सत्संग हो तो सत्संगमें सुनने जाय। सच्ची वाणी मिलती हो वह सुने। साधर्मीका संग करे। शास्त्र अभ्यास करे तो स्वयं अपनेआप तो समझता नहीं है। वहाँ कुछ सुननेको मिले वहाँ सुने, विचार करे, रुचि करे, बहारका रस कम करे, ऐसा सब करे। ऐसे संयोग हो उसमें, करना कुछ अलग है, ऐसी खटक रखे, ऐसा सब करे तो हो। स्वयंको उतनी लगन लगनी चाहिये तो हो।
मुमुक्षुः- आप तीन-चार बार "खटक' शब्द बोले, वह खटक क्या है? खटक लगनी चाहिये, खटक क्या है?
समाधानः- उसे अन्दरसे खटकना चाहिये कि मैं यह जो करता हूँ वह बराबर नहीं है। अन्दर खटकता है। अन्दर लीन नहीं हो जाता। अन्दर खटक लगनी चाहिये कि अरे..! ये सब अलग है और मुझे करनेका कुछ अलग है। मैं इसमें फँस न जाऊँ। मुझे करनेका कुछ अलग है, ऐसी खटक अंतरसे लगनी चाहिये।
मुमुक्षुः- .. बादमें मनमें ज्यादा विकल्प आते हैं। आप जिस सत्संगमें रहते हो, हमें उसके लिये भी प्रयास करना पडता है। यहाँ हम सत्संगके लिये हम सब तेरह जन यहाँ आये हैं, तो क्या है कि, उतना करनेमें भी हमें बहुत परिश्रम पडता है। लेकिन हमें मालूम है कि हम कुछ खोज रहे हैं। सबके मनमें एक ही भावना है। इसलिये ऐसा होता है कि आप जैसे किसीको मिलते हैं तो ऐसा लगता है कि ऐसे कोई नियम मिले कि जिससे हम दैनिक जीवनमें, रोजके रुटिनमें रहकर कहींसे रोज, आप जो कहते हो कि बाहरसे अलिप्त रहकर हम हमारे अन्दर समीप आ सके।
समाधानः- सब इकट्ठा होते हो वह ठीक है, बाकी रोज उठकर कुछ विचार