२७४ फिर भी कहा गुरुदेव राजकुमार (थे), उतना भी बाहर नहीं बोलती। सब गुरुदेव कहते थे।
मुमुक्षुः- हमको कोकिलाबहिनने कहा कि आपको देखा तो बोले।
समाधानः- जिज्ञासा रखते हो। बाकी समझना तो बहुत है, समझना बहुत बाकी है। अन्दर बहुत करना बाकी है।
मुमुक्षुः- आपकी एक दृष्टि पड जाय तो कोई दिक्कत नहीं। फिर क्या दिक्कत है? कहते हैं न कि इतनी रूई हो उसे निकालते-निकालते मर जाय, लेकिन तिनका गिरा तो फट जाय। ज्यादा क्यों? फटका लग जाय तो कोई ज्यादा देर नहीं लगेगी। देर नहीं लगेगी, खटक लग जायगी। आप हमें आशीर्वाद दीजिये। हमें आशीर्वाद चाहिये।
समाधानः- सच्ची जिज्ञासा हो तो उसका पुरुषार्थ किये बिना रहता ही नहीं। अपनी जिज्ञासा सच्ची होनी चाहिये। अन्दरसे लगन लगनी चाहिये।
मुमुक्षुः- बस, आशीर्वाद दीजिये कि हमारा सब अच्छा हो जाय।
समाधानः- अच्छा हो जाय, जिज्ञासा हो उसे अच्छा ही होता है। भले पुरुषार्थ कम हो, लेकिन संतोष है कि मार्ग यह है।
समाधानः- .. इसलिये कहीं शान्ति नहीं है। यहाँसे वहाँ करे, ऐसा करे, कहीं शान्ति नहीं है। कितना संतोष है। मुझे तो ऐसा कहना था कि उसने तो कुछ ग्रहण भी किया है, लेकिन आप सब तो अनिश्चित हो। ... ज्ञान करनेको कहते हैं, समझना कहते हैं। लेकिन मार्ग ही वह है। समझे बिना अन्दर ध्यान कैसे होगा? समझे बिना। सच्चे ज्ञान बिना ध्यान कैसे होगा? सच्चा मार्ग बतानेवाले मिलना मुश्किल है। जीवको करना होता है, लेकिन जानता नहीं।
... पुरुषार्थ चालू किया तो अभी मुझे पूछते हैं, आप.. भूमिका कितनी विकसीत हो जाय, कितने साल हो गये। उसके पहले जिज्ञासाकी भूमिका थी। .. उम्रमें जिज्ञासाकी भूमिका थी। मैंने कहा, प्रथम भूमिका तो विकट ही होती है। ... फिर एक प्रश्नके बाद दूसरा प्रश्न। छोटीपीपरमें चरपराईके (लिये) घिसना ही पडे। चनेको सेके तो अन्दरसे स्वाद आये। बारंबार उसके पीछे पडना चाहिये। पीछे पडे बिना कुछ होता नहीं। ...
हिन्दुस्तानमें सब मुनि भी क्रियामें पडे थे। सब कितने... मार्गके लिये प्रयत्न करता है। पुरुषार्थ करे तो अन्दर विश्वास तो आये कि सच्चे देव-गुरु मिले और मार्ग हमें अन्दरसे सच्चा मिला है। रुचि सच्ची है। इतना भी संतोष (हो)। ये तो कोई संतोष नहीं, अभी भी गोते ही खाते हैं। ... दुःख लगे तो अपनी ओर जाय।
मुमुक्षुः- दुःख लगता है इसलिये स्वरूपकी रुचि शुरू हुयी?
समाधानः- हाँ, रुचि शुरू हुयी।