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मुमुक्षुः- क्योंकि विभावकी रुचिमें दुःख नहीं लगता था।
समाधानः- हाँ, उसमें दुःख नहीं लगता था। स्वभावकी रुचि ..
मुमुक्षुः- यह उसका दूसरा पहलू है।
समाधानः- स्वभावकी रुचि होती है तो उसमें दुःख लगता ही है।
मुमुक्षुः- दुःख लगता है क्योंकि स्वभावकी रुचि शुरू हुयी।
समाधानः- .. वेदन हो बादमें अल्प अस्थिरता रहती है। परन्तु पहले तो उसे रुचि हो इसलिये दुःख तो लगना चाहिये। फिर कितना लगे, वह उसकी उग्रता पर निर्भर करता है। कहाँ-कहाँ बेचारोंने मार्ग मान लिया हो, ऐसा हो जाता है। पंचमकालके महाभाग्य, गुरुदेवने यह मार्ग बताया। बाकी सब कहाँ-कहाँ अटके थे।
मुमुक्षुः- वह कहे, हमें सच्चे गुरुको पहिचानना कैसे? आप बारंबार कहते हो... आँखमें आँसु आ गये थे।
समाधानः- एक सदगुरु मिलने चाहिये। देशनालब्धिमें ऐसा आता है। एक बार प्रत्यक्ष गुरु या देव, सजीवनमूर्ति मिले तो जीव अन्दरसे जागृत होता है। ऐसा उपादान- निमित्तका सम्बन्ध है।
समाधानः- .. उनके गीत और सब,.. सबका हृदयका भेद हो जाय ऐसा तो उनका वैराग्य था। आत्मा कितना अन्दर समीप हो गया है। गुरुदेव भी कहते थे कि ... मोक्षगामी हो। गुरुदेव कहते थे। लोग कुछ समझे नहीं।
मुमुक्षुः- ऐसे हरिगीत बनाये हैं।
समाधानः- समयसारकी, समवसरणकी, वह मानस्तंभकी। उनको रुचता नहीं था फिर भी हरिगीत कैसा बनाया है! एक संस्कृत टीका नहीं है, इसलिये मेरेसे यह नहीं हो रहा है। टीका संस्कृत...
.. बैठे थे और हिंमतभाई गाते थे। हिंमतभाई क्या गाते थे! ऐसे भावसे गाते हो न, इसलिये गुरुदेवको ऐसा लगता। हीराभाईके बंगलेमें... हिंमतभाई नौकरी करते थे। क्या करें? आप तो वहाँ नौकरी (करते हो), नहीं तो आप जैसेको तो यहीं रख लें। समयसार भी नहीं लिखा था। उससे पहले भी, ... आप जैसेको तो यहाँ रख लेना चाहिये।
मुमुक्षुः- अनुभव कैसे हो?
समाधानः- आत्माका स्वरूप पहिचानकर आत्मा भिन्न है, उसका भेदज्ञान करके ज्ञायकको पहिचानकर उसमें एकाग्रता हो, एकाग्रताकी विशेषता हो वह ध्यान है। ध्यान यानी एकाग्रता। आत्माको पहिचानकर भेदज्ञान करके उसमें एकाग्रता, एकदम उग्र एकाग्रता करनेसे स्वानुभूति (होती है)।