Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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है अपने उपादान है, परन्तु उसमें जो निमित्त हो, वही सच्चे देव, वही सच्चे गुरु और वही शास्त्र है। बाकी ऊपर-ऊपरसे तो लगे कि सब धर्मकी बात (करते हैं)। परन्तु अन्दर आत्माका स्वरूप क्या है? आत्मा भिन्न, अन्दर आत्मा विकल्पसे भिन्ह, अतंर आत्मामें स्वानुभूति हो, किस मार्गसे होती है? वह सब किसने प्रगट किया है? जिसने प्रगट किया हो और जो मार्ग बताते हो, वह देव, वह गुरु और वह शास्त्र (हैं)। वह होने चाहिये।

उसे दृढता ऐसी हो कि सत्य क्या है? इस जगतमें सत्य क्या है? सच्चा स्वरूप क्या है? किस मार्गसे आत्माको मुक्ति मिले और आत्माका स्वभाव और स्वभावमेंसे शान्ति मिले? ऐसी दृढता करके फिर आत्माका सच्चा स्वरूप है। आत्माका स्वरूप जो बताते हो, वह सच्चे देव-गुरु-शास्त्र हैं।

और भवका अंत करनेके लिये आत्माको पहिचानना, आत्माका अभ्यास करना। उसके लिये अभ्यास, शास्त्रका वांचन, देव-गुरु-शास्त्रकी महिमा। लेकिन वह देव कौन? गुरु कौन? उसकी पहिचान करनी पडे। और आत्माका स्वरूप ज्ञायक-जाननेवाला है। उसे स्पष्टरूपसे बतानेवाला है? जो स्पष्ट बताये और उसकी जिसने साधना की, वही देव-गुरु-शास्त्र (सच्चे हैं)। और अन्दर आत्माको पहिचाननेका प्रयत्न करना। ये सब आकुलता स्वरूप है बाहर तो। अंतरमें सुख है, अंतरमें शान्ति है। अंतर दृष्टि करके आत्माको पहिचाननेका प्रयत्न करना।

मुमुक्षुः- ..आपके दर्शन करती रहती हूँ। शान्ति लगती है।

समाधानः- पुरुषार्थ स्वयंको करना है। पुरुषार्थ मन्द है। मार्ग गुरुदेवने बताया, उसकी रुचि हो। परन्तु पुरुषार्थ तो स्वयंको करना है। उसीका अभ्यास करते रहना, बारंबार आत्माको पहिचाननेका। आत्मा ज्ञायक है। प्रतिक्षण उसका चिंतवन करना। गुरुदेवने कहा न? छोटीपीपरको घिसने पर अन्दरसे चरपराई (प्रगट होती है)। आत्माका जो स्वरूप है उसका अभ्यास करता रहे। आत्माका स्वरूप ज्ञायक है, उसे पहिचाननेका प्रयत्न करे। उसकी लगन लगानी। काँच कौन है और हीरा और रत्न आदि क्या है? उसकी परीक्षा करनी पडे। स्वयं विचार करके नक्की करे। बाहरमें तो करे, परन्तु अंतरमें करनेका है। आत्मा कौन है? उसे दर्शानेवाले कौन है?

गुरुदेवने कोई अपूर्व स्वरूप बताया है। और अन्दर आत्मा भी अपूर्व और आत्मा अनुपम है। उसे पहिचाननेका प्रयत्न करना। मनन, चिंतवन, उसकी महिमा आदि (करते रहना)। पुरुषार्थकी मन्दता (है)। उतनी तैयारी न हो इसलिये ये सब साधन दिखाई देते हैं, वहाँ रुचि हो जाती है। वहाँ ऐसे साधन नहीं होते। इसलिये उसीका बारंबार घोलन करते रहना।