समाधानः- .. निर्णय करना पडे। काँच कौन है और हीरा, रत्न आदि क्या है, उसकी परीक्षा करनी पडे। ... बाहरमें तो करता है, लेकिन अंतरमें करना है। आत्मा कौन? उसे बतानेवाले कौन? गुरुदेवने कोई अपूर्व स्वरूहप बताया है। और आत्मा भी अपूर्व और आत्मा अनुपम है। उसे पहिचाननेका प्रयत्न करना। मनन, चिंतवन, उसकी महिमा (करनी)। पुरुषार्थकी मन्दतासे उतनी तैयारी न हो इसलिये ये सब साधन दिखते हैं, उसमें रुचि हो जाती है। वहाँ ऐसे साधन नहीं होते न। बारंबार उसीका घोलन करते रहना। मनुष्यभव मिला, उसमें ऐसे गुरु मिलने इस पंचमकालमें महा मुश्किल है। सच्चा मार्ग बतानेवाले। मार्ग गुरुदेवने बताया। अंतरमेंसे स्वयं रुचि करके, नक्की करके पुरुषार्थ करने योग्य है।
मुमुक्षुः- आप अन्दरका सब जानते हो। हमारा कल्याण हो..
समाधानः- करनेका स्वयंको है।
मुमुक्षुः- वह तो हमको ही करना है। अंतर ज्ञानी हो न, इसलिये हम कहाँ है, क्या है, ... तो हमें जरा... वहाँ तक पहुँचे।
मुमुक्षुः- ..
समाधानः- मन्त्र गुरुदेवने एक ही दिया है, ज्ञायकका मन्त्र है। वह मन्त्र भी अन्दर ज्ञायक ज्ञायकरूप परिणमे। एकत्वबुद्धि अनादिकी है। उसका अभ्यास एकत्वताका है। उसे एकत्वबुद्धि हो रही है। उसे तोडकर मैं ज्ञायकरूप हूँ। ज्ञायकरूप परिणति प्रगट करनी, वह अपने हाथकी बात है। स्वयंको शरीरके साथ एकत्व, विभावके साथ एकत्व, हर जगह एकत्वबुद्धि हो रही है। इसलिये उसे पूरे जीवनका-परिणतिका पलटा करना है। परिणति दूसरी हो गयी है। पूरा पलटा।
अन्दर मैं ज्ञायकरूप ही हूँ, उसका पूरा पलट जाना चाहिये। मैं ज्ञायक ही हूँ, अन्य कुछ नहीं हूँ। मेरेमें कुछ है ही नहीं। मैं तो अकेला ज्ञायक, अकेला ज्ञायक हूँ। ऐसी परिणतिका पूरा पलटा, उसकी दिशाका पलटा, उसकी दृष्किा पलटा। उसके पूरा आंतरिक जीवनका पलटा हो, वह उसे पुरुषार्थसे होता है। पूरा पलटा.. अभी तो दृष्टि, ज्ञान और अमुक प्रकारसे उसकी परिणतिका पलटा हो। आगे तो अभी स्वानुभूति