२८० तो दूर रही, परन्तु अभी तो उसे पूरी दृष्टिका पलटा करना है। वह पलटा करनेके लिये उसे उतना अभ्यास करनेका है। पूरी दृष्टि बाहर है। उसका पूरा पलटा स्वयंको करनेका है। पूरी दिशा बदलनी है, दृष्टि पलटनी है। वह दृष्टि पलटे तो अन्दरसे परिणति प्रगट हो।
मुमुक्षुः- पुरुषार्थ करना यानी वांचन ज्यादा करना या मनन करना?
समाधानः- वांचन, विचार आदि सब करना, लेकिन एक चैतन्य-ओरकी दृष्टि प्रगट करनी। अंतरकी दिशा पलटनेके लिये। हेतु-ध्येय वह होना चाहिये। (जब तक) वह हो नहीं, वह परिणति तदगतरूप, उस रूप तदाकार परिणति न हो तब तक वांचन, विचार आदि सब वही करना होता है। विचारमें टिके नहीं तो वांचन करे, वांचनमेंसे फिर विचार करे। जहाँ परिणति उसकी स्थिर हो, वह करता रहे। परन्तु करनेका एक ही है-उसकी दृष्टि पलटनी है। अन्दरकी दिशा पलटनी है।
मुमुक्षुः- दिशा तो पलटती हो ऐसा दिखाई नहीं देता। पीछे पडे हैं..
समाधानः- उसके पीछे लगे रहना, उसके पीछे पडते रहना। जब तक न हो तब तक एक ही करना है। तो ही अन्दरसे ... ये तो अनादिका अभ्यास है। जिसे पलटता है उसे अंतर्मुहूर्तमें पलटता है, न पलटे उसे देर लगती है। गुरुदेवने मार्ग बताया। कितने ही लोगोंको तो मार्ग ही हाथमें नहीं आता। ये तो गुरुदेवने मार्ग बताया है। ये शरीर तू नहीं है, विभाव तू नहीं है, गुणके भेद, पर्यायके भेदमें रुकना नहीं। दृष्टि अखण्ड पर करनी। गुरुदेवने मार्ग कितना स्पष्ट कर दिया है। परको तू कर नहीं सकता। कर्ता, क्रिया, कर्मके भेदसे भी वह परको करता नहीं। तू तेरे स्वभावका कर्ता है। कितने प्रकारसे स्पष्ट करके बताया है। स्वयं अंतरसे भीगना वह भी अपने हाथकी बात है। सब अपने हाथकी बात है। गुरुदेवने तो मार्ग बताया है।
समाधानः- .. सम्यग्दर्शन प्राप्त करनेका, भेदज्ञान करना वह उसका उपाय है। बारंबार भेदज्ञान। आत्मा-ओरकी रुचि हो, उसकी महिमा हो, उसकी महिमा विशेष करनी, उसका भेदज्ञान करना वह उसका उपाय है। ये शरीर मैं नहीं हूँ। आत्मा चैतन्यतत्त्व अंतर भिन्न है। विभाविक पर्याय जो संकल्प-विकल्प वह भी आत्माका स्वरूप नहीं है। आत्मा भिन्न है।
परद्रव्य जो है उसका उत्पाद-व्यय-ध्रुव (भिन्न है)। आत्मा उत्पाद-व्यय-ध्रुवस्वरूपसे भिन्न है। अंतरमें उसे पहिचानना, बारंबार उसे पहिचाननेका प्रयास करना। मैं चैतन्यतत्त्व हूँ। मेरेमें ज्ञान है, मेरेमें आनन्द है। अनन्त गुणसे भरा मैं आत्मा हूँ। बारंबार उसका अभ्यास करनेसे वह प्रगट होता है। वह हो नहीं तो भी बारंबार उसका अभ्यास करनेसे वह प्रगट होता है।