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चत्तारी मंगलं, अरिहंता मंगलं, साहू मंगलं, केवलिपणत्तो धम्मो मंगलं। चत्तारी लोगुत्तमा, अरिहंता लोगुत्तमा, सिद्धा लोगुत्तमा, साहू लोगुत्तमा, केवलिपणत्तो धम्मो लोगुत्तमा।
चत्तारी शरणं पवज्जामि, अरिहंता शरणं पवज्जामि, सिद्धा शरणं पवज्जामि, केवली पणत्तो धम्मो शरणं पवज्जामि।
चार शरण, चार मंगल, चार उत्तम करे जे, भवसागरथी तरे ते सकळ कर्मनो आणे अंत। मोक्ष तणा सुख ले अनंत, भाव धरीने जे गुण गाये, ते जीव तरीने मुक्तिए जाय। संसारमांही शरण चार, अवर शरण नहीं कोई। जे नर-नारी आदरे तेने अक्षय अविचल पद होय। अंगूठे अमृत वरसे लब्धि तणा भण्डार। गुरु गौतमने समरीए तो सदाय मनवांछित फल दाता।
मुमुक्षुः- मैं तो परिपूर्ण द्रव्यको पकडकर बैठा हूँ। ऐसा उसमें आता है।
समाधानः- द्रव्यको ग्रहण किया है, पकडकर बैठा है उसका अर्थ यह है। जो पूर्ण स्वभाव द्रव्य अनादिअनन्त पूर्ण भरा ही है पूर्ण स्वभावसे। उसे मैंने ग्रहण किया है, पकडकर बैठा हूँ, उसका अर्थ यह है। उसे ग्रहण किया है। उसकी आगेपीछेकी नीति वैसी है न, पकडकर बैठा हूँ। आगेपीछे क्या आता है?
मुमुक्षुः- आगेपीछे हो तो ज्यादा मालूम पडे।
समाधानः- परिपूर्ण द्रव्यको मैंने ग्रहण किया है।
मुमुक्षुः- ग्रहण किया है, मतलब?
समाधानः- ग्रहण किया अर्थात लक्ष्यमें लिया है। उस पर दृष्टिको स्थापित की है। मैंने दृष्टि बदलकर चैतन्य द्रव्य पर दृष्टि की है। उस पर दृष्टि की वह ग्रहण। उसका अवलम्बन लिया है-ग्रहण किया है।
मुमुक्षुः- अवलम्बन लिया माने?
समाधानः- शब्दके शब्द और उसके पीछे... शुद्ध पर्याय प्रगट होती है। सम्यग्दर्शन प्राप्त हो (तो) अनेक जातकी शुद्ध पर्यायें, चारित्रकी पर्यायें सब द्रव्यदृष्टिके आलम्बनसे, द्रव्यको ग्रहण करनेसे सब प्रगट होता है। मूल वस्तु वह है। उसे ग्रहण करनेसे, उस पर दृष्टि स्थापित करनेसे सभी पर्यायें निर्मल होती हैं। दृष्टि ऊलटी है इसलिये सब पर्याय विभावकी पर्याय होती है। दृष्टि स्वभावकी ओर गयी तो स्वभावमेंसे फिर निर्मल पर्यायें प्रगट होती हैं। आत्मामेंसे सब शुद्ध पर्यायें प्रगट होती है। उस ओर दृष्टि जाय, उस ओर परिणति मुडे इसलिये निर्मलता प्राप्त होती है।
मुमुक्षुः- .. में कहना है कि चारित्र बिना सम्यग्दृष्टि नहीं है।