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समाधानः- चारित्र बिना सम्यग्दृष्टि नहीं है,.. सम्यग्दर्शन सच्चा न हो तो चारित्र नहीं है। उन लोगोंको हमें जवाब क्या देना, हम जवाब दे नहीं सकते हैं। चारित्र बिना सम्यग्दर्शन नहीं है, ऐसा है? सम्यग्दर्शन नहीं है तो चारित्र नहीं है। चारित्र यानी बाह्य चारित्र वहाँ नहीं कहा है। बाह्य चारित्र... अन्दर स्वरूप रमणतारूप चारित्र कब प्राप्त हो? सम्यग्दर्शन प्राप्त हो तो ही चारित्र प्राप्त होता है। स्वरूपकी रमणतारूप चारित्र, जो यथार्थ चारित्र है वह सम्यग्दर्शनके बिना होता नहीं। और वह चारित्र प्रगट हो, उसमें बीचमें मुनिपना आदि सब सहज ही आता है। लेकिन वह सम्यग्दर्शन पूर्वकका चारित्र वही चारित्र है। सम्यग्दर्शन बिनाका चारित्र तो बाह्य क्रिया मात्र और शुभभाव मात्र है। सम्यग्दर्शन बिनाका चारित्र तो शुभभावरूप क्रियामात्र है।
सम्यग्दर्शन हो तो ही सच्चा चारित्र है। अनन्त कालसे जो चारित्र सम्यग्दर्शन बिना अंगीकार किया वह द्रव्य मुनिपना तो अनन्त बार पाला। ऐसा द्रव्य मुनिपना पालकर अनन्त बार ग्रैवेयकमें गया। ऐसा चारित्र तो सम्यग्दर्शन बिनाका अनन्त कालमें बहुत पाला। उससे कहीं भवका अभाव नहीं हुआ। सम्यग्दर्शन हो, अन्दरकी स्वानुभूति प्राप्त हो तो ही सच्चा चारित्र हो। सम्यग्दर्शन बिना चारित्र नहीं है। चारित्र बिना सम्यग्दर्शन, वह तो बाह्य चारित्र समझना, शुभभावरूप। वह चारित्र नहीं है, उससे पुण्य बन्ध होता है। उससे नौंवी ग्रैवेयक तक जाता है।
जिसे सम्यग्दर्शन होता है उसे अवश्य क्रमशः चारित्र आता ही है। उस भवमें न आवे तो दूसरे भवमेें (आता है)। जिसे सम्यग्दर्शन प्राप्त हो, उसे अवश्य चारित्र होता है। गृहस्थाश्रममें सम्यग्दृष्टि होते हैं, चारित्र नहीं होता है, परन्तु सम्यग्दर्शन होता है। परन्तु सम्यग्दर्शन जिसे प्राप्त हुआ उसे अवश्य चारित्र उस भवमें अथवा दूसरे भवमेें अवश्य चारित्र होता है। बाहरसे कपडे छोड दिये इसलिये (हो गया) चारित्र। और फिर धर्मकी प्रतीति वह सम्यग्दर्शन। उसका क्या समझाये? ... वह भिन्न है। अंतरमें ऐसा हो, बादमें बाहरसे त्याग होता है। अंतरमें हो तो बाह्य त्याग आता है। छठवां-सातवां गुणस्थान हो तो ही मुनिपना (होता है)।
मुमुक्षुः- गुरुदेवके शब्दोंके पीछे इतना गंभीर आशय रहा है...
समाधानः- कहनेका आशय अलग ही था।
मुमुक्षुः- गुरुदेवके आशयको आप और मामा समझे हैं। बाकी सब तो..
समाधानः- कहनेका आशय, उसका रहस्य सब अलग ही था।
मुमुक्षुः- आपके ... गंभीर आशय समझ सकते हैं। .. माताजीका उपकार है।
समाधानः- गुरुदेवने सच्चा मार्ग बताया, उस मार्ग पर चलनेसे (प्राप्त होता है)।
मुमुक्षुः- गुरुदेव... गुरुदेवके मुखसे माताजीका नाम ... गुरुदेवको माताजीकी महिमा